2014 के आम चुनाव में देश के सियासी फलक पर नरेंद्र मोदी का उभार एक और नई सियासी तस्वीर लेकर आया. मोदी की जीत, ब्रांडिंग और सबको चौंकाने वाले चुनावी अभियान के लिए चुनावी रणनीतिकार को श्रेय दिया गया. इसके बाद भारत की राजनीति में चुनाव कैंपेंनिंग एक वास्तविकता बन गई और प्रशांत किशोर इस क्षेत्र में एक बड़े ब्रांड.
ये कहानी फिर बिहार में नीतीश की जीत, यूपी में राहुल-अखिलेश की जुगलबंदी और फिर पंजाब में कैप्टन अमरिंदर की जीत के मौके पर भी देखी गई. लेकिन इस बार के हाई वोल्टेज गुजरात चुनाव में ये माहिर रणनीतिकार सीन से एकदम गायब रहा. आखिर कारण क्या है. क्या राजनीतिक दलों ने चुनावी रणनीतिकार को मौका देने की बजाय पार्टी के रणनीतिकारों पर ही भरोसा करना ज्यादा बेहतर समझा.
मोदी ने किया था लॉन्च
देश की सियासत में प्राइवेट चुनावी रणनीतिकार का सबसे पहले इस्तेमाल नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में किया था. बीजेपी ने 2013 में पीएम पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम पर मुहर लगाई. इसके बाद मोदी ने सियासी बाजी जीतने के लिए प्राइवेट चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को हायर किया था. देश में ये पहली बार था कि कोई पार्टी अपने रणनीतिकार के बजाए प्राइवेट रणनीतिकार पर ज्यादा भरोसा कर रही हो. प्रशांत किशोर ने मोदी की चुनावी रैली से लेकर नारे गढ़ने से लेकर मोदी की छवि को बेहतर तरीके से पेश करने का काम किया. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला और नरेंद्र मोदी देश की सत्ता के सिंहासन पर विराजमान हुए. इसके बाद जैसे चुनावी रणनीतिकारों को साथ लाने का चलन ही चल पड़ा.
नीतीश-राहुल ने अपनाया फॉर्मूला
मोदी के इस फॉर्मूले को बिहार में नीतीश कुमार ने सिर्फ अपनाया ही नहीं, बल्कि प्रशांत किशोर को मोदी से तोड़कर अपने साथ मिला भी लिया. प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार के लिए बिहार में चुनावी प्रचार का जिम्मा संभाला और सत्ता में उनकी वापसी कराई. इसके बाद प्रशांत किशोर के हुनर और रणनीति के कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी मुरीद हो गए. राहुल ने यूपी और पंजाब विधानसभा चुनाव का जिम्मा दिया. राहुल की खाट सभा, सपा के गठबंधन, यूपी को ये साथ पसंद है जैसे नारे और अभियान प्रशांत किशोर के आइडिया का ही हिस्सा था. लेकिन यूपी में कामयाबी नहीं दिला सकी. इसको लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी भी सामने आई. हालांकि पंजाब में कांग्रेस की सत्ता में वापसी कराने में वे कामयाब रहे. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद से प्रशांत किशोर मीडिया के पटल से अचानक गायब से हो गए.
गुजरात में राहुल के रणनीतिकार पार्टी के अंदर से
यूपी में कांग्रेस की शिकस्त ने राहुल के सर से प्रशांत किशोर के चढ़े भूत को लगता है उतार दिया है. इसीलिए गुजरात के अहम चुनाव में राहुल ने प्रशांत किशोर के बजाय पार्टी के रणनीतिकारों पर ज्यादा भरोसा जताया. इसी के मद्देनजर राहुल ने गुजरात में अशोक गहलोत को पार्टी का प्रभारी बनाया. गहलोत ने गुजरात में सियासी समीकरण बिछाए और रणनीति बनाई. 6 महीने गुजरात में रहकर उन्होंने पार्टी को दोगुनी सीटें दिलाने में कामयाबी हासिल की. कांग्रेस गुजरात की सियासी बाजी भले ही हार गई, लेकिन बीजेपी को जीतने में लोहे के चने चबाने पड़ गए.
कहां हैं प्रशांत किशोर?
अब सवाल ये उठता है कि गुजरात चुनाव से दूर प्रशांत किशोर आजकल कहा हैं और क्या कर रहे हैं? दरअसल प्रशांत किशोर दक्षिण भारत में अपने सियासी हुनर को अजमाने की कोशिश कर रहे हैं. प्रशांत किशोर आजकल वाईएसआर कांग्रेस के साथ जुड़े हैं. कुछ समय पहले वाईएसआर अध्यक्ष और आंध्र प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने पार्टी नेताओं के साथ एक बैठक की थी, जिसमें प्रशांत किशोर मौजूद थे. वाईएस जगनमोहन रेड्डी इन दिनों आंध्र प्रदेश की यात्रा पर हैं, इसे प्रशांत किशोर की दिमाग की उपज मानी जा रही है.