साल 2017 में भाजपा को एक के बाद एक कई सफलताएं मिलीं। पहले विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत मिला तो साल उतरते-उतरते निकाय चुनाव पार्टी ने परचम फहराया। पर, पार्टी की उम्मीदें अभी खत्म नहीं हुई हैं। इनमें से कई इस साल पूरी हो सकती हैं। साल 2018 भाजपा के कुछ और लोगों को नया मुकाम देगा तो कुछ दिग्गज भाजपा विरोधियों की मुश्किलें बढ़ाने वाला भी साबित होगा।
विधानसभा और निकाय चुनाव के बाद भाजपा के लिए सहकारिता चुनाव के रूप में तीसरी परीक्षा शुरू हो चुकी है। पार्टी के सूरमा इस परीक्षा में भी अव्वल नंबर से पास होने की तैयारी में जुटे हैं। तीन चरणों की यह परीक्षा अक्तूबर तक चलेगी। नतीजे जो भी हों पर, समीकरण तो भाजपा के पक्ष में हैं। आशय यह कि साल 2017 अगर प्रदेश तथा शहरों की सत्ता भाजपा को सौंपने वाला रहा तो 2018 सहकारी संस्थाओं में नई सत्ता लाने वाला होगा।
उपचुनाव की परीक्षा लेकिन उम्मीद बरकरार
लोकसभा की दो सीटों पर उपचुनाव के रूप में भी भाजपा के लिए एक और परीक्षा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के लोकसभा से त्यागपत्र देने से रिक्त हुई गोरखपुर और फूलपुर सीटों के उपचुनाव जल्द होने हैं। यहां 2014 जैसा ही प्रदर्शन भाजपा के लिए एक परीक्षा होगा। हालांकि समीकरण पार्टी की उम्मीदों का आगे बढ़ा रहे हैं।
यही नहीं, विधान परिषद में स्थानीय प्राधिकारी क्षेत्र के कोटे की रिक्त एक सीट पर भी चुनाव होना है। बदायूं की यह सीट सपा के बनवारी सिंह यादव के निधन से रिक्त हुई है। भाजपा यहां समीकरणों में उलटफेर कर जीत की आशा कर सकती है।
अपने नौ लोगों को आसानी से राज्यसभा भेजेगी भाजपा
मनोहर परिकर के त्यागपत्र से रिक्त राज्यसभा की सीट पर भाजपा उम्मीदवार हरदीप पुरी का निर्विरोध निर्वाचित होना तय माना जा रहा है। शेष 10 सीटों के चुनाव मार्च में हैं क्योंकि इन दस सदस्यों का कार्यकाल दो अप्रैल को समाप्त होगा। इनमें भाजपा के विनय कटियार को छोड़कर बाकी सभी सपा, बसपा और कांग्रेस के सांसद हैं।
भाजपा के गठबंधन सहित 325 विधायकों की संख्या को देखते हुए यह तय माना जा रहा है कि वह अपने नौ लोगों को आसानी से राज्यसभा भेज देगी। विधान परिषद में विधानसभा कोटे से चुने जाने वाले विधान परिषद के 13 सदस्यों का कार्यकाल भी 5 मई तो समाप्त हो रहा है।
इनका चुनाव अप्रैल में होगा। इनमें भाजपा के दो मौजूदा सदस्य डॉ. महेंद्र सिंह और मोहसिन रजा हैं। शेष सपा और बसपा के हैं। भाजपा संख्या बल पर 11 लोगों को विधान परिषद में पहुंचा सकती है। साफ है कि यह साल भाजपा के कई और नेताओं को ‘माननीय’ कहलाने का अवसर देगा।
बसपा, कांग्रेस व सपा सदस्यों की बढ़ेंगी मुश्किलें
भाजपा की उम्मीदों का साल उनके कुछ धुर विरोधियों की मुश्किलें बढ़ाएगा। वैसे तो बसपा सुप्रीमो मायावती राज्यसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे चुकी हैं। पर, अब अगर वह चाहें भी तो 19 विधायकों के बल पर वह दोबारा राज्यसभा नहीं पहुंच सकतीं। कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी का कार्यकाल भी समाप्त हो रहा है।
कांग्रेस भी अपने सिर्फ सात विधायकों की बदौलत तिवारी को दोबारा राज्यसभा नहीं भेज सकती। उधर विवादास्पद बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाले सपा के नरेश अग्रवाल की भी सदस्यता भी पूरी हो रही है।
सपा अपने बल पर सिर्फ एक सदस्य को आसानी से राज्यसभा भेज सकती है जबकि उसके छह सदस्य रिटायर हो रहे हैं। इनमें अग्रवाल के अलावा दर्शन सिंह यादव, जया बच्चन, किरनमय नंदा, चौधरी मुनव्वर सलीम और आलोक तिवारी शामिल हैं।
मायावती के अलावा बसपा के मुनकाद अली का भी कार्यकाल पूरा हो रहा है। देखने वाला होगा कि सपा नेतृत्व राज्यसभा में किसे भेजता है। वह नरेश को मौका देता है या जया बच्चन जैसे किसी और को।
उम्मीद नए सियासी संदेशों की भी
सपा के पास अपना एक उम्मीदवार राज्यसभा भेजने के बाद लगभग 10-11 वोट बचेंगे। ऐसे में देखने वाला यह होगा कि सपा के अतिरिक्त वोट और बसपा तथा कांग्रेस के विधायकों के कुल वोट जोड़कर किसके पक्ष में समीकरण बनाता है।
जो भी हो यह नए राजनीतिक समीकरण बनने-बिगड़ने का संदेश भी लाएगा। राज्यसभा के चुनाव में कौन किसके साथ खड़ा होता है, उससे यह साफ हो जाएगा कि लोकसभा चुनाव में भाजपा विरोधी की दिशा किस ओर है।