12 गांव के लोगों द्वारा की गई जनअदालत के बाद नक्सलियों ने मुझे छोड़ने का फैसला किया था जवान राकेश्वर सिंह

नक्सलियों द्वारा बंधक बनाए गए कोबरा बटालियन के जवान राकेश्वर सिंह मनहास को सही सलामत रिहा करा लिया गया है। वह छह दिनों से नक्सलियों के कब्जे में थे। राकेश्वर को पद्मश्री धर्मपाल सैनी के नेतृत्व में बनी टीम ने छुड़ाया। तीन अप्रैल को टेकलगुड़ा में हुई मुठभेड़ में नक्सलियों ने राकेश्वर को बंदी बना लिया था और फिर उनकी तस्वीर जारी कर बताया था कि वह सकुशल हैं। नक्सलियों ने जवान को छोड़ने के लिए मध्यस्थता की शर्त रखी थी।

राकेश्वर को छुड़ाने के लिए धर्मपाल सैनी के साथ गोंडवाना समाज के अध्यक्ष तेलम बाैरैय्या, रिटायर्ड शिक्षक जयरुद्र करे और बीजापुर के मुरतुंडा की सरपंच सुखमती हक्का ने मध्यस्थता में अहम भूमिका निभाई। जानकारी के लिए बता दें धर्मपाल को बस्तर का गांधी भी कहा जाता है। इधर, नक्सलियों के चंगुल से सकुशल लौटने के बाद राकेश्वर सिंह ने बताया कि वे हमले के बाद बेहोश हो गए थे। उन्हें जब होश आया तो नक्सलियों ने उन्हें बंदी बना लिया। उन्होंने बताया कि नक्सली छह दिन तक उन्हें अलग-अलग गांव में घुमाते रहे। हालांकि, किसी ने उनके साथ बुरा सुलूक नहीं किया।

बता दें, नक्सलीयों ने राकेश्वर सिंह को 12 गांव के लोगों द्वारा की गई जनअदालत के बाद छोड़ने का फैसला किया था। यह जनअदालत तुमलगुड़ा में लगाई गई थी। इसमें एक हजार से ज्यादा लोग मौजूद थे। उन सभी की हामी के बाद राकेश्वर को छोड़ा गया। जिस दिन राकेश्वर को बंदी बनाया गया, उसी दिन धर्मपाल सैनी को इस बात की सूचना मिल गई थी।

मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, ‘नक्सलियों और पुलिस के बीच एक विश्वासपात्र व्यक्ति की जरूरत थी। उन्हें नहीं पता कि उनके नाम पर सहमति कैसे बनी, लेकिन जब मध्यस्थता करने के लिए कहा गया तो वे फौरन तैयार हो गए।’

उन्होंने कहा कि नक्सलियों से बात करने के बाद अन्य मध्यस्थों की भूमिका तय हुई जिसमें जय रुद्र करे, तेलम बाेरैया, सुखमती हपका भी हमारे साथ थे।’ उल्लेखनीय है कि जय रुद्र करे दंतेवाड़ा के रिटायर्ड शिक्षक हैं। रिटायरमेंट के बाद से ही वे धर्मपाल सैनी से जुड़कर काम करने लगे। वहीं, मुरदंडा के रहने वाले तेलम बाेरैया पूर्व शिक्षक हैं। पिछले चार साल से वे गोंडवाना समाज के अध्यक्ष हैं। धर्मपाल सैनी की बात करें तो वे 92 साल के हो चुके हैं।

बालिका शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें 1992 में पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है। वे सालों से बस्तर में आदिवासियों के लिए काम कर रहे हैं। इन सबके अलावा सुखमती हपका ने भी मध्यस्थता में अपनी भूमिकी निभाई। वे मुरदंडा की पूर्व सरपंच रह चुकी हैं। फिलहाल वह एक सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ ही गोंडवाना समाज की उपाध्यक्ष भी हैं।

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