सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मृत्युदंड की सजा के रूप दी जाने वाली फांसी की सजा देने के तरीके में बदलाव की एक याचिका की सुनवाई करते हुए भारत सरकार से तीन महीने में जबाव में मांगा है।
याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारा संविधान हर किसी को जीने का और सम्मान से मरने का अधिकार देता है।
कोर्ट ने आगे कहा है कि आधुनिक समय में कई तरीकों के अविष्कार के साथ मौत की सजा पर विचार किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने विधायिका को मौत की सजा के लिए विभिन्न आधुनिक तरीकों के बारे में सोचना और विचार करना चाहिए।
बता दें कि पिछले काफी समय से फांसी की सजा के खिलाफ आवाज उठाई जाती रही है। सुप्रीम कोर्ट के वकील ऋषि मल्होत्रा ने अपनी याचिका में अदालत से यह दरख्वास्त की थी कि सजा-ए-मौत के तरीके पर विचार किए जाने की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट इसी याचिका पर विचार करते हुए भारत सरकार से तीन महीने में जबाव मांगा है
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट इसी याचिका पर विचार करते हुए भारत सरकार से तीन महीने में जबाव मांगा है। वकील ऋषि ने फांसी की सजा दिए जाने के बारे में लिखा था कि इसमें करीब 40 मिनट का समय लगता है और मौत बेहद दर्दनाक होती है। अगर एक दोषी को गोली मारकर या जहर देकर मौत दी जाए तो इसमें कम समय लगेगा और उसे ज्यादा दर्द भी नहीं होगा। उन्होंने कहा कि दूसरे देशों में गोली और जहर से मौत देने के तरीके उपयोग किए जाते हैं। जबकि हमारे देश में अब भी मौत की सजा पाए दोषी को फांसी दी जाती है।
दरअसल, आईपीसी की धारा 353 (5) में मल्होत्रा ने बदलाव की मांग की है, जिसके मुताबिक दोषी के गले में रस्सी डालकर और फिर लटका कर मौत दी जाती है। उन्होंने कहा कि मौत दिए जाने का सम्माजनक तरीका होना बेहद जरूरी है। गौरतलब है कि दुनियाभर के मानवाधिकार संगठन भी फांसी की सजा को अमानवीय मानते हैं और इसके खिलाफ हैं। हालांकि कई संगठन तो मौत की सजा देने की ही खिलाफत करते हैं।