भाजपा ने अपने भाषणों, जोक्स और जुमलों में मखौल उड़ाने का कोई अवसर नहीं छोड़ा लेकिन उनका वह पप्पू राजबाड़ा की परीक्षा में तो पास हो गया है। यह गौर करने लायक है कि जब से देश का आमजन राहुल गांधी की बातों पर गौर करने लगा है भाजपा की जुबान पर उतनी ही तेजी से पप्पू शब्द गायब सा हो गया है। राहुल गांधी के इस दो दिवसीय उज्जैन, इंदौर संभाग के चुनावी दौरे की बात करें तो पहले दिन की परीक्षा में उसका यह पप्पू परीक्षा में पास हो गया है।
इसी राजबाड़ा पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी मां अहिल्या को माल्यार्पण और दुकानदारों से जनसंपर्क के लिए आ चुके हैं।सारी ताकत झोंकने के बाद भी लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन और नगर भाजपा अध्यक्ष गोपी नेमा के गृह क्षेत्र वाले राजबाड़ा पर पांच हजार लोग भी नहीं जुट पाए थे।जबकि यहां झंडे उठाने के लिए दो सौ रु दिहाड़ी पर मजदूरों की सेवा ली गई थी। अव्यवस्था से नाराज अमित शाह राजबाड़ा से कृष्णपुरा तक वाहन से भी नहीं घूम पाए और आधे रास्ते में ही गाड़ी के शीशे चढ़ा कर दशहरा मैदान बूथ कार्यकर्ता सम्मेलन स्थल पर रवाना हो गए थे, वहां भी उम्मीद-दावे के मुताबिक कार्यकर्ता नहीं जुट पाए थे।
अमित शाह के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अपनी बहुप्रचारित जनआशीर्वाद यात्रा वाले रथ पर सवार होकर राजबाड़ा क्षेत्र में भी आए थे। तमाम सरकारी-असरकारी इंतजामों के बावजूद यह यात्रा भी बदरंग साबित हुई थी।राजबाड़ा पर इन दोनों नेताओं के फीके मजमे के मुकाबले राहुल गांधी का रोड शो, सभा इक्कीस साबित हुई है। राहुल गांधी के इस दौरे को देखने-समझने के लिए राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा भी मीडिया से चर्चा के बहाने सुबह इंदौर पहुंच गए थे।
राहुल गांधी के इस दौरे में विभिन्न गुटों में बंटी कांग्रेस के नेताओं, कार्यकर्ताओं ने जो एकजुटता दिखाई है उसे कांग्रेस के पक्ष में हवा बनना कहना जल्दबाजी इसलिए होगी कि सुमित्रा महाजन के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ने वाले (स्व) ललित जैन जब टिकट मिलने की घोषणा के बाद दिल्ली से इंदौर लौटे थे और रेलवे स्टेशन से उनका ऐतिहासिक स्वागत जुलूस निकला था उस दिन सट्टा बाजार ने उनकी जीत तय कर दी थी लेकिन चुनाव परिणाम आने पर सुमित्रा अजेय साबित हुईं।
आज के इस रोड शो में उमड़ा जन सैलाब चालीस हजार या पचास हजार जितना भी था स्वस्फूर्त था। इसमें कार्यकर्ताओं के साथ उतने ही उत्साह से आमजन की भागीदारी इसलिए चौंकाने वाली थी कि सत्तारूढ़ दल जिसे पप्पू-पप्पू कह कर मखौल उड़ाता रहा है उस राहुल के प्रति लोगों में लहर बनती नजर आ रही है, शायद इसकी वजह संसद में भाषण के बीच मोदी को झप्पी देने के लिए दौड़ पड़ना भी हो इस अप्रत्याशित प्रसंग से देश की नजरों में ऊंचे उठे राहुल गांधी (इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा लगातार बताए गए) आंख मारने वाली हरकत के कारण प्रसिद्धि के अर्श से बचकानी हरकत के फर्श पर धड़ाम हो गए थे। उन सारी हरकतों को आमजन ने या तो भुला दिया है या मोदी के इंदौर दौरे का इंतजार हो कि वो इस आंख कांड और विधायक जीतू पटवारी के पार्टी गई तेल लेने वाली बात को किस अंदाज में याद दिलाएंगे।
कांग्रेस यदि राहुल के इस दौरे (जो राहुल की किसी नादानी से अाज तक हास्यास्पद नहीं हुआ है) को सुपर-डुपर मान कर अपना सीना छप्पन इंची करने की भूल करे तो यह उसकी कमअक्ल साबित होगी।कांग्रेस को याद रखना चाहिए कि पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त भी राहुल का दौरा हुआ था तब इंदौर जिले में एक और धार, खरगोन जिले में सात सीटों पर ही कांग्रेस जीती थी-यानी मालवा निमाड़ की 66 में से भाजपा 57 और कांग्रेस 9 सीटों पर जीती थी। कांग्रेस यदि 2008 के चुनाव वाला इतिहास भी दोहरा सके तो राहुल का यह दौरा कामयाब माना जाएगा- 2008 में कांग्रेस 25, भाजपा 40 सीटों पर जीती थी, एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी।कांग्रेस ने राहुल का यह दौरा सोच समझकर आयोजित किया है-अभी टिकट वितरण नहीं होने से हर दावेदार दमखम से सहयोग कर रहा है। यही दौरा प्रत्याशियों की सूची जारी करने के बाद होता तो ये अप्रत्याशित नजारा शायद ही देखने को मिलता।
भाजपा को भी राहुल के इस रोड शो की समीक्षा का मौका मिला है।मोदी-शाह का फोकस मप्र पर अधिक रहना है। शिवराज चेहरा जरूर हैं लेकिन कमान मोदी-शाह और उनकी टीम के हाथ में है। राहुल के इस रोड शो का खुमार आमजन के दिलोदिमाग से किस तरह उतारा दाए यह मंथन भी आज ही से इसलिए भी शुरु हो गया होगा कि शाह की टीम में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय इसी शहर से हैं।