सावन मास के विनायक चतुर्थी का व्रत शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाएगा। इस दिन भगवान गणेश की पूजा का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन चंद्रमा को देखना अशुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे व्यक्ति को कलंक का सामना करना पड़ता है। हिंदू पंचांग के अनुसार 08 अगस्त को चतुर्थी व्रत रख सकते हैं।
भगवान गणेश को सभी देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय माना गया है। उनकी पूजा के बिना कोई भी मांगलिक कार्यक्रम पूर्ण नहीं माना जाता है। इस साल यह व्रत 08 अगस्त को रखा जाएगा। ऐसी मान्यता है कि इस कठिन व्रत का पालन करने से बड़े से बड़े विघ्न को आसानी से टाला जा सकता है।
इसके साथ ही जीवन में सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, धन और सौभाग्य का आगमन होता है। अगर आप बप्पा की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो आपको इस दिन (Sawan Vinayak Chaturthi 2024 Date) से जुड़ी कुछ प्रमुख बातों को अवश्य जानना चाहिए, जो इस प्रकार है।
कब है विनायक चतुर्थी? (Sawan Vinayak Chaturthi 2024 Shubh Muhurat)
हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 07 अगस्त, 2024 को देर रात 01 बजकर 05 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इसका समापन 09 अगस्त को रात 12 बजकर 36 मिनट पर होगा। इस तिथि पर चंद्रास्त रात 09 बजकर 27 मिनट पर होगा, जिसके चलते 08 अगस्त को चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा।
विनायक चतुर्थी पूजा विधि (Sawan Vinayak Chaturthi 2024 Puja Vidhi)
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र स्नान करें और पीले रंग के वस्त्र धारण करें। एक वेदी को साफ करें और उसपर गणेश भगवान की प्रतिमा को स्थापित करें। उनका पंचामृत और गंगाजल से अभिषेक करें। सिंदूर का तिलक लगाएं। पीले फूलों की माला और दुर्वा अर्पित करें। उनके प्रिय मोदक का भोग अवश्य लगाएं। देसी घी का दीपक जलाएं। भगवान गणेश के वैदिक मंत्रों का जाप करें। संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा का पाठ करें या सुनें। आरती से पूजा को समाप्त करें।
अगले दिन सात्विक भोजन से अपने व्रत का पारण करें। पूजा में तुलसी पत्र गलती से भी शामिल न करें। व्रती पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमायाचना करें।
गणेश जी पूजा मंत्र
त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय।
नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्।
महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा॥