राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में निर्मोही अखाड़े को उसके अधिकारों से वंचित करना संत-समाज केगले नहीं उतर रहा है। निर्मोही अखाड़ा स्तब्ध है। वह यह समझ नहीं पा रहा है कि आखिर उसके सेबियत के अधिकार को क्यों खारिज कर दिया गया जबकि वर्षों से उस जगह पर पूजा का प्रबंधन उसके हाथ में था।
निर्मोही अखाड़ा ने बताया कि हमें इस बात की खुशी है कि 153 वर्षों के बाद अयोध्या में राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ हो गया लेकिन यह बात गले नहीं उतर पा रही है कि उसके सेबियत का अधिकार को क्यों नकार दिया गया। अखाड़े के सरपंच 95 वर्षीय महंत राजा रामचंद्र आचार्य के अनुसार, अखाड़ा शुरू से ही राम मंदिर के लिए कानूनी लड़ाई लड़ता आ रहा है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसके अधिकारों को ही नकार दिया।
अखाड़े के प्रवक्ता कार्तिक चोपड़ा ने कहा कि एक तरफ सुप्रीम कोर्ट यह मान रहा है कि विवादित स्थल पर वर्षों से निर्मोही अखाड़े की मौजूदगी थी वहीं दूसरी तरह उसके सेबियत के अधिकार को छीन लिया गया। न तो सुन्नी वक्फ बोर्ड और न ही रामलला विराजमान ने उसके सेबियत के अधिकार को चुनौती दी थी, बावजूद इसके अखाड़े को उसके इस अधिकार से वंचित कर दिया गया। सुन्नी वक्फ बोर्ड तो यह भी मानता रहा था कि बाहरी अहाते में अखाड़े का कब्जा था।