12000 करोड़ डॉलर और 17 की कड़ी मेहनत लगेगी तब जाके बनेग इंसानी रोबोट

अमेरिका के शिकागो में वैज्ञानिकों ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) को लेकर परिचर्चा में उम्मीद जताई कि साल 2029 तक रोबोट मनुष्य से भी ज्यादा स्मार्ट हो जाएंगे.  इससे पहले वैज्ञानिकों ने 2040 तक मनुष्य से रोबोट के ज्यादा स्मार्ट होने का अनुमान लगाया था. एचपी इंक के शीर्ष वैज्ञानिक ने यह बात कही. एचपी के मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी और एचपी लैब के प्रमुख शेन वॉल ने कहा कि एआई और मशीन लर्निग में तेजी से विकास हो रहा है, इसे देखते हुए वैज्ञानिकों का अनुमान है कि साल 2029 तक रोबोट मनुष्यों से ज्यादा समझदार हो जाएंगे. वॉल ने यहां एचपी रिइंवेंट पार्टनर फोरम में कहा कि हालांकि कई लोग ऐसा होने को लेकर डर रहे हैं, लेकिन उचित सावधानी के साथ किए गए इस बदलाव से हर किसी को फायदा होगा, चाहे वह विनिर्माण हो, स्वास्थ्य हो या फिर नवाचार हो. स्मार्ट रोबोट विकसित होने से हर किसी का फायदा होगा.12000 करोड़ डॉलर और 17 की कड़ी मेहनत लगेगी तब जाके बनेग इंसानी रोबोट
उन्होंने कहा कि एआई भारी मात्रा में डाटा का प्रबंधन करता है और निर्णय लेने के लिए पैटर्न को देख सकता है. उनके अनुसार पहले ही बड़े पैमाने पर डाटा फर्म हैं, जो बड़ी संख्या में डाटा का इस्तेमाल कर रहे हैं और यहां शोध केंद्र और कंपनियां हैं, जहां मशीनों को यह सिखाया जाता है कि हमारे आसपास की चीजों के प्रबंधन के लिए डाटा का इस्तेमाल कैसे किया जाए.

वॉल करीब एक दशक पहले एचपी में शामिल हुए थे, वे कंपनी की प्रौद्योगिकी दृष्टि और रणनीति का संचालन करते हैं.  उनके मुताबिक, मशीनें इतनी स्मार्ट हो चुकी हैं कि गलती का अनुमान लगा सकती हैं. इसी दिशा में 3डी प्रिटिंग में एक व्यापक क्रांति हुई है. वॉल ने कहा, ‘3डी प्रिटिंग अब जटिल उत्पादों को संभाल रही है और भविष्य में व्यापक बदलाव लाने वाली है.’ उन्होंने कहा कि फिलहाल ज्यादातर विनिर्माण के लिए कच्चे माल को एक से दूसरी जगह लाया जाता है, जबकि 3डी प्रिंटिंग से ढुलाई की ज्यादातर जरूरत खत्म हो जाएगी.

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वॉल ने कहा कि मशीन अब अपने पुर्जे खुद बना रही है और भविष्य में यह और भी अधिक परिष्कृत हो जाएगा.  इस परिपेक्ष्य में उन्होंने कहा कि पिछले 30 सालों में फोटोग्राफी में दिलचस्प बदलाव हुए हैं. पहले फोटो खींचकर लैब में जाती थी और वहां से प्रिंट बन कर आता था. उन्होंने कहा, ‘अब कहीं भी रील देखने को नहीं मिलेगी, चाहे अफ्रीका हो या भारत. इसी तरह का कुछ दुनिया भर के 12000 करोड़ डॉलर के विनिर्माण उद्योग में होने वाला है.’

 

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