भाजपा ने विधानसभा चुनाव में सपा पर तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए जबरदस्त हमला किया था। एक वक्त ऐसा आया जब चुनाव विकास के बजाय कब्रिस्तान- श्मशान, ईद-दिवाली पर बिजली में भेदभाव जैसे मुद्दों पर केंद्रित हो गया था। काम बोलता है…., का नारा देने वाली सपा भाजपा के हमले की काट नहीं ढूंढ पाई। चुनाव ध्रुवीकरण की तरफ बढ़ा और भाजपा को बड़ी जीत मिली। कमोबेश यही हाल पिछले लोकसभा चुनाव में था।
गुजरात चुनाव में कांग्रेस की रणनीति से सबक लेते हुए विपक्षी दल, खासतौर से सपा 2019 के आम चुनाव से पहले चौकन्नी हो गई है। सपा का जोर गांव, गरीब, किसान, पिछड़ों और दलितों पर है। इस मुद्दे पर भाजपा पर हमला करने में सपा चूकना नहीं चाहती। तभी तो विधानपरिषद में अखिलेश यादव ने कहा, उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य पिछड़े वर्ग से आते हैं इसलिए सरकार में उनकी सुनी नहीं जाती है, पंचम तल से उनकी नेम प्लेट हटवा दी गई।
विधानसभा में रामगोविंद के सवालों पर भाजपा बचाव की मुद्रा में रही। अखिलेश भी लगातार कह रहे हैं कि हमारे घर जन्माष्टमी पर झांकी सजती है, नवरात्र पर व्रत रखे जाते हैं लेकिन इनका प्रचार नहीं करते, सोशल मीडिया पर फोटो नहीं डालते।
अखिलेश चुनाव प्रचार के लिए गुजरात गए तो द्वारिकाधीश के दर्शन के बाद सभाएं की। सपा सैफई में भगवान कृष्ण की बड़ी मूर्ति लगा रही है। मकसद साफ है कि सपा, लोकसभा व विधानसभा चुनाव की तरह भाजपा को धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण का मौका नहीं देना चाहती।