नागपुर : वर्ष 2009 से आरएसएस का महासचिव पद संभाल रहे भैयाजी जोशी को शनिवार को तीन साल का एक और कार्यकाल सौंपा गया. अब वे 2021 तक इस पद पर रहेंगे. इसके साथ ही यह भी तय होगा कि 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान संघ की कमान जोशी के ही हाथों में रहेगी. यह भी स्‍पष्‍ट हो गया कि चुनावों के नजदीक होने के चलते संघ ने बड़े पैमाने पर बदलाव से परहेज किया. आरएसएस के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने कहा, ‘‘ सह कार्यवाह का चुनाव आज शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ और सुरेश भैयाजी जोशी को एक और कार्यकाल के लिए पुन: निर्वाचित किया गया.’’लगातार चौथी बार आरएसएस के महासचिव चुने गए भैयाजी जोशी, 2021 तक रहेंगे पद पर

वह संघ की तीन साल में एक बार होने वाली एक महत्वपूर्ण बैठक के बाद बोल रहे थे. बैठक में मौजूद सूत्रों के अनुसार, किसी अन्य नाम का प्रस्ताव सामने नहीं आया. भैयाजी जोशी साल 2009 से लगातार संघ के सरकार्यवाह हैं. आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की नागपुर में जारी तीन दिवसीय बैठक में शनिवार को यह चुनाव हुआ.

सरकार्यवाह आरएसएस प्रमुख यानी सरसंघचालक के बाद सबसे अहम पद है. आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा हर तीन साल में आयोजित होती है और इसी में राष्ट्रीय महासचिव का चुनाव होता है. यह संघ के अहम फैसले लेने वाली संस्था है. भैयाजी जोशी का चौथा कार्यकाल मार्च 2021 तक होगा. सभा की बैठक 9 मार्च को शुरू हुई और 11 मार्च तक चलेगी.

उल्लेखनीय है कि संघ के कई नेता चाहते थे कि भैयाजी जोशी तीन साल का एक कार्यकाल और लें. हालांकि खुद जोशी स्वयं इसके पक्ष में नहीं थे. इस चुनाव से पूर्व सरकार्यवाह के पद के लिए सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले या कृष्ण गोपाल के नामों की भी चर्चा थी. संघ के सरकार्यवाह का चुनाव इस बार इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया था क्योंकि अगले एक साल में लोकसभा समेत कई राज्यों के महत्वपूर्ण चुनाव होने हैं.

आरएसएस की प्रतिनिधि सभा में शनिवार को भारतीय भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्द्धन की आवश्यकता के लिए प्रस्ताव भी पारित किया गया. प्रस्‍ताव के अनुसार भाषा किसी भी व्यक्ति एवं समाज की पहचान का एक महत्वपूर्ण घटक होती है. यह उसकी संस्कृति की सजीव संवाहिका होती है. देश में प्रचलित विविध भाषाएं व बोलियां संस्कृति, परंपराओं, ज्ञान एवं साहित्य को अक्षुण्ण बनाए रखने के साथ ही वैचारिक नवसृजन के लिए भी जरूरी हैं. आज विविध भारतीय भाषाओं व बोलियों के चलन तथा उपयोग में आ रही कमी, उनके शब्दों का विलोपन व विदेशी भाषाओं के शब्दों से प्रतिस्थापन एक गम्भीर चुनौती बनकर उभर रहा है.