एमनेस्टी इंटरनेशनल की तस्वीरों से हुआ खुलासा

विश्वप्रसिद्ध मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा सोमवार को जारी ताजा सेटेलाइट तस्वीरों से म्यांमार में मिलिट्री बेस बनाने की खबरों का खुलासा हुआ है. इन तस्वीरों में रोहिंग्याओं के जले हुए घरों के मलबे पर ‘नए सुरक्षा ढांचों’ का निर्माण होता दिख रहा है. एमनेस्टी की तस्वीरों के जरिए बताया गया है कि ये निर्माणाधीन मिलिट्री बेस उन्हीं स्थानों पर हैं, जहां से रोहिंग्या शरणार्थियों को पिछले साल म्यांमार की सेना ने बेदखल किया था. म्यांमार में रोहिंग्याओं को इतनी बेदर्दी के साथ हटाए जाने की इस घटना की संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भी कड़ी निंदा की थी. राष्ट्रसंघ ने इसे ‘इथनिक क्लीनिजिंग’ यानी नस्लों का सफाया अभियान करार दिया था.

एमनेस्टी ने कहा- विकास के नाम पर बना रहे मिलिट्री बेस

एमनेस्टी इंटरनेशनल के क्राइसिस रिस्पॉन्स डायरेक्टर तिराना हसन ने एएनआई को बताया, ‘म्यांमार के राखिने में वहां की सरकार द्वारा विकास के नाम पर बनाए जा रहे मिलिट्री बेसों की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.’ अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ में छपी खबर के अनुसार एमनेस्टी की तस्वीरों के विश्लेषण के आधार पर यह बताया गया है कि राखिने में इस साल जनवरी से लेकर अब तक कम से कम ऐसे तीन मिलिट्री बेस बनाए गए हैं.

वहीं इससे ज्यादा निर्माणाधीन हैं. तिराना हसन कहते हैं, ‘सरकार द्वारा मिलिट्री बेस बनाए जाने की घटना को हम क्या कहें. क्या यह सेना द्वारा नाटकीय तरीके से जमीन हड़पने की चाल थी.’ एमनेस्टी की तस्वीरों से यह भी जाहिर है कि राखिने में भारी तादाद में सेना की तैनाती की गई है. यानी इससे लगता है कि म्यांमार की सेना रोहिंग्या शरणार्थियों को उनके घर लौटने के प्रयासों को रोकने की भी योजना बना रही है. सेना की मौजूदगी से पता चलता है कि बांग्लादेश से रोहिंग्याओं को लौटने के किसी भी प्रयास को म्यांमार मंजूरी नहीं देगा.

रोहिंग्याओं के स्वदेश वापसी को हुआ था करार

इसी साल जनवरी में बांग्लादेश और म्यांमार के बीच रोहिंग्याओं के स्वदेश वापसी को लेकर एक समझौता हुआ था. इसके तहत लाखों रोहिंग्याओं के स्वदेश वापसी के रास्ते तलाशने की दिशा में कदम उठाए जाने के संकेत मिले थे. एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक 7 लाख से ज्याद रोहिंग्या मुसलमान पिछले साल म्यांमार से जान बचाकर बांग्लादेश पहुंचे थे. इनमें से असंख्य रोहिंग्या शरणार्थी स्वदेश लौटना चाहते हैं. इसके लिए दोनों देशों की सरकारों के बीच जो करार किया गया था, उसके तहत दो वर्षों के समयांतराल में रोहिंग्याओं की स्वदेश वापसी होनी थी. स्वदेश वापसी की यह प्रक्रिया 22 जनवरी से शुरू होनी थी. लेकिन इसमें हो रही देरी और मिलिट्री बेस के निर्माण की खबरों से से रोहिंग्याओं की सुरक्षा को लेकर सवाल उठने लगे हैं.