नई दिल्ली : पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने कांग्रेस के हार के सिलसिले है को जारी रखा है. आपको बता दें कि पिछले साल पांच साल में कांग्रेस 24 चुनाव हार चुकी है. 2013 में कांग्रेस उपाध्यक्ष बनाए गए राहुल गाँधी के नेतृत्व में उत्तराखंड और मणिपुर में उसे जहां अपनी सरकार गंवानी पड़ी तो 403 विधानसभा वाले देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में उसके हाथ महज 7 सीटें आईं. पंजाब में उसकी सरकार जरूर बनी लेकिन गोवा में पार्टी बहुमत नहीं पा सकी. एक के बाद एक लगातार हार सेअब तो कांग्रेस में भी राहुल के खिलाफ नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगे है.
उल्लेखनीय है कि सोनिया गांधी की बीमारी के कारण पार्टी से जुड़े फैसले राहुल गाँधी ही ले रहे हैं ऐसे में वे पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेने से बच नहीं सकते. जब राहुल गांधी को 2013 में कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया था. ये वो समय था जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी और देश के कई राज्यों में कांग्रेस सत्ता में थी. लेकिन समय का पलटा देखिए कि आज स्थिति ये है कि पार्टी के पास लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल बनने लायक सांसद नहीं हैं और अधिकतर राज्यों में पार्टी सत्ता से बाहर हो चुकी है.
बता दें कि 2013 से ही राहुल और कांग्रेस के माथे पर एक के बाद एक हार लिखे जाने का सिलसिला शुरू हो गया.कांग्रेस को पहला बड़ा झटका 2012 में तब लगा जब यूपी में 21 सांसद वाली ये पार्टी महज 28 सीटें जीत सकी. पंजाब में अकाली-भाजपा गठबंधन सबको चौंकाते हुए दोबारा सरकार बनाने में सफल रहा. गोवा में भी दिगंबर कामत वाली कांग्रेस सरकार को हार गई. उत्तराखंड और मणिपुर में जरूर कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब रही.लेकिन इसी साल के अंत में गुजरात में एक बार फिर कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी. जबकि हिमाचल में वो जीत गई. वहीँ 2013 में कांग्रेस को त्रिपुरा, नगालैंड, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में कारारी हार मिली. मिजोरम और मेघालय को छोड़ दिया जाए तो उसके लिए खुशखबरी महज कर्नाटक से आई.
2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत की उम्मीद तो किसी ने नहीं की थी लेकिन वो सिर्फ 44 सीटों तक सिमट जाएगी ऐसी कल्पना किसी ने नहीं की थी.इसी साल पार्टी ने हरियाणा और महाराष्ट्र में सत्ता खो दी . झारखंड, जम्मू-कश्मीर में भी उसकी करारी हार हुई. 2015 में बिहार में महागठबंधन में शामिल होकर उसने जीत का स्वाद जरूर चखा लेकिन इसी साल उसे असली झटका दिल्ली में मिला जहां उसे एक भी सीट नहीं मिली.
2016 भी कांग्रेस के लिए कोई अच्छी खबर लेकर नहीं आया. इस साल उसके हाथ से असम जैसा बड़ा राज्य चला गया. केरल में भी उसकी गठबंधन सरकार हार गई. जबकि पश्चिम बंगाल में लेफ्ट के साथ चुनाव लड़ने के बावजूद उसका सूपड़ा साफ होगया.हालांकि पुड्डुचेरी में उसकी सरकार बनी.यूपी-चुनाव में राहुल और अखिलेश यादव के गठबंधन को मुंह की खानी पड़ी है. यह सब रणनीति में नयापन न होना ,नेतृत्व क्षमता का अभाव और कोई स्पष्ट दृष्टिकोण नहीं होने से नतीजे कांग्रेस के पक्ष में नहीं गए.कांग्रेसअपने सबसे बुरे दौर से कैसे बाहर निकालेगी इस सवाल का जवाब कांग्रेसी ही नहीं, बल्कि पूरा देश तलाश रहा है.
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