यें हैं रामायण के वो श्राप जिन्होंने पलट दी थी रामायण की कहानी

पहले किसी की भक्ति से प्रसन्न होकर देवताओं या ऋषि-मुनियों द्वारा मनुष्य को वरदान दिया जाता था। क्रोधित होने पर श्राप देने जैसी प्रथा भी इसी समाज का हिस्सा थी।

यें हैं रामायण के वो श्राप जिन्होंने पलट दी थी रामायण की कहानीयह सभी तथ्य रोचक जानकारी से भरपूर हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रामायण और महाभारत युग ऐसे दो युग हैं, जिनमें विस्तृत मात्रा में वर एवं शाप संबंधित कथाएं मौजूद हैं। आज हम जानेंगे रामायण के श्राप से जुड़ी कहानी :
महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई रामायण के अनुसार राजा दशरथ जब युवावस्था में थे तो उन्हें ‘शब्दभेदी’ बाण विद्या का ज्ञान प्राप्त था। यह एक ऐसी विद्या थी जिसकी मदद से बंद आंखों से भी केवल एक आवाज़ सुनने से सही निशाने पर बाण चलाया जा सकता था। इस विद्या का प्रयोग राजा दशरथ द्वारा जंगल में जानवरों के शिकार के लिए किया जाता था। एक दिन वे शिकार के मकसद से ही जंगल में गए।
उस दिन भारी वर्षा हो रही थी। वे सरयू नदी के निकट पहुंचे और तभी उन्हें एक हाथी के पानी पीने की आवाज़ सुनाई दी। उन्होंने अपने शब्दभेदी ज्ञान से उस दिशा में तीर छोड़ा लेकिन अगले ही पल किसी मनुष्य के दर्द से चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी। यह आवाज़ सुनते ही राजा दशरथ उस दिशा में तेज़ी से दौड़े और वहां जाकर उन्होंने खून से लथपथ एक युवक को नदी के किनारे दर्द से तड़पते हुए पाया।
दरअसल दशरथ द्वारा चलाया गया बाण उस युवक को लगा था जिसका नाम श्रवण था। उसने जैसे ही राजा को देखा तो वह बोला, “तुम एक राजकुमार हो, फिर भी तुमने एक जानवर की तरह मेरा शिकार किया? मैंने ऐसा क्या अपराध किया था, मैं तो केवल अपने नेत्रहीन एवं वृद्ध माता-पिता के लिए पानी लेने आया था। उनका मेरे बिना और कोई सहारा नहीं है और तुमने मुझे ही मार दिया? जाओ अब मेरे माता-पिता को तुम ही मेरे मरने की खबर सुनाओ।“ यह सुन राजा दशरथ उस स्थान पर पहुंचे जहां श्रवण के माता-पिता अपने पुत्र का इंतज़ार कर रहे थे। कुछ हिम्मत एकत्रित कर उन्होंने श्रवण की मृत्यु की खबर उन्हें सुनाई। यह खबर सुन श्रवण के पिता ने राजा दशरथ को श्राप दिया और कहा, “जिस प्रकार आज अपने पुत्र की मृत्यु से मैं तड़प रहा हूं, ठीक इसी प्रकार तुम भी अपने पुत्रों से अलग हो जाओगे और उनके वियोग में मर जाओगे।“ इस श्राप ने वर्षों बाद अपना असर दिखाया, जब श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ वनवास चले गए और उनके पीछे से राजा दशरथ का राम से बिछड़ने के कारण स्वर्गवास हो गया।

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अगली कहानी भी रामायण युग से जुड़ी है। श्री राम जिन्हें भगवान विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है उन्हें एक अप्सरा द्वारा श्राप दिया गया था। वह अप्सरा वालि वानर की पत्नी थी। यह तब की बात है जब सुग्रीव वानर जो कि श्री राम के प्रिय मित्र थे, उन्होंने भगवान राम से मदद मांगी। सुग्रीव और वालि के बीच युद्ध हुआ जिसमें भगवान राम के बाण द्वारा वालि की मृत्यु हो गई।
वालि को मरा हुआ देख उसकी पत्नी तारा ने श्रीराम को कोसा और उन्हें एक श्राप दिया। श्राप के अनुसार भगवान राम अपनी पत्नी सीता को पाने के बाद जल्द ही खो देंगे। उसने यह भी कहा कि अगले जन्म मे उनकी मृत्यु उसी के पति द्वारा हो जाएगी। अगले जन्म में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया था और उनके इस अवतार का अंत एक शिकारी (जो कि वालि का ही रूप था) द्वारा किया गया था।
अगली कथा भगवान श्रीराम के परम भक्त हनुमान के जीवन की है, जब वे बालावस्था में थे। माना जाता है कि हनुमान बचपन में काफी शरारती स्वभाव के थे। हद से ज्यादा उछल-कूद और नासमझी में तपस्या में लीन साधुओं को परेशान करना उनका शौक था, लेकिन यही शौक उन्हें काफी महंगा पड़ा। एक दिन उन पर एक साधु का क्रोध उमड़ पड़ा और उन्हें श्राप मिला। श्राप के अनुसार भगवान हनुमान अपनी उड़ सकने की शक्तियों को भूल जाएंगे और यह शक्तियां तभी वापस लौटेंगी जब कोई इन शक्तियों की याद उन्हें कराएगा।

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इसीलिए भगवान हनुमान उड़ना भूल गए थे लेकिन जब माता सीता को लंका से ढूंढ़ कर लाना था तब जाम्बवान द्वारा हनुमान को उनकी दैविक शक्तियों का आभास कराया गया। इन शक्तियों द्वारा भगवान हनुमान का आकार आकाश को छूने लगा और वे उड़कर लंका की ओर रवाना हो गए।केवल भगवान हनुमान ही नहीं, अपितु उनकी माता को भी श्राप भोगना पड़ा था। मान्यता है कि अंजना जो कि भगवान हनुमान की माता थीं और एक मादा वानर भी थीं, लेकिन पौराणिक कथा के अनुसार वे एक अप्सरा थीं। उनका अप्सरा से वानर बन जाने का कारण कुछ और नहीं बल्कि एक श्राप का असर था।

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