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कांग्रेस पार्टी के नेता 2007 के गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष की ओर से की गई मौत के सौदागर की टिप्पणी को अभी तक नहीं भूले हैं। 2007 के चुनाव में गुजरात में कैंप कर चुके पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि चुनाव प्रचार अभियान ठीक रास्ते पर चल रहा था, लेकिन जैसे ही कांग्रेस अध्यक्ष ने जन सभा में यह टिप्पणी की, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री ने इसे भुना लिया।
वह विधानसभा चुनाव को सांप्रदायिक रंग देने में सफल हो गए। इसी तरह से यूपी के विधानसभा चुनाव 2017 में भी पीएम के प्रचार अभियान ने आखिरी समय में पूरी बाजी पलट कर रख दी थी। यहां तक कि उम्मीद से परे पीएम ने चुनाव के अंतिम चरण में बनारस में हाई वोल्टेज चुनाव प्रचार अभियान चलाकर बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया था। उनकी इस रणनीति ने न केवल विरोधियों को निराश करना शुरू कर दिया था, बल्कि उन्हें दूसरे-तीसरे चरण के चुनाव के बाद से ही अपने प्रचार अभियान की रणनीति बदलने पर विवश होना पड़ा था।
ये है पीएम मोदी की खासियत
पीएम मोदी अलहदा हैं। अथक परिश्रम उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बन चुका है। पीएम के बारे में आम है कि उन्हें बस अर्जुन की तरह चिडिय़ा की बस आंख (लक्ष्य) दिखाई देती है। इसके लिए आखिरी दम तक हर विकल्प पर न केवल विचार करते हैं, बल्कि सही संभावना को टटोलकर कमजोर कड़ी पहचान में आते ही उस पर पूरी रणनीति के साथ आगे बढ़ जाते हैं।
पीएम के इस कौशल के आगे उनका हर विरोधी मझधार में आकर पस्त होने लगता है। इसके लिए पीएम होमवर्क पर भरपूर भरोसा करते हैं। पीएम मोदी के एक विश्वासपात्र का कहना है कि उनकी टीम में शामिल हर व्यक्ति बस कर्म करने और फल की इच्छा न रखने वाले गीता के उपदेश को सूत्र वाक्य मानकर चलने वाला होता है।
इसी का नतीजा है कि मोदी-शाह की जोड़ी अटल-आडवाणी की जोड़ी से भी मजबूत स्थान बनाने, भाजपा को एक सूत्र में पिरोने, केंद्र और पार्टी की निचली ईकाई तक तालमेल बनाने, पार्टी के नेताओं को अनुशासन में रखने में लगातार सफल रही है।
कांग्रेस का अज्ञात भय
कांग्रेस पार्टी जहां हर निर्णय लेने से पहले जरूरत से ज्यादा ठोंकने बजाने के लिए मशहूर है, वहीं अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा होमवर्क के बाद निर्णय लेने में देर नहीं लगाती। टीम मोदी-शाह का यह पक्ष कांग्रेस के नेताओं को अज्ञात भय की तरह घेरे रहता है। हालांकि इस समय कांग्रेस पार्टी उच्च स्तर पर सतर्कता बरत रही है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के इर्द-गिर्द पार्टी के रणनीतिकार हर स्थिति पर नजर रख रहे हैं। गुरुद्वारा रकाबगंज से लेकर शिमला और गुजरात के अहमदाबाद, सूरत, वड़ोदरा तक लगातार नजर रखी जा रही है। किसी भी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए पार्टी छोटे से लेकर बड़े मुद्दे पर कांग्रेस नेताओं की राय को लेकर पूरी तरह से संवेदनशील है।