बेटे चित्रेश की शहादत के बाद बुरी तरह टूट गए पिता, बोले- ‘ऐसे कोई छोड़कर जाता है क्या’

भारत-पाक सीमा पर नियंत्रण रेखा के करीब आईईडी ब्लास्ट में शहीद हुए मेजर चित्रेश के अंतिम संस्कार में देहरादून में जनसैलाब उमड़ पड़ा। लोगों ने ‘अमर रहे’, ‘भारत माता की जय’ जैसे नारे लगाए। उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी पहुंचे। मेजर चित्रेश बिस्ट को उनके पिता टाइगर कहकर बुलाते थे। पिता रिटायर इंस्पेक्टर एसएस बिष्ट और बेटा मेजर चित्रेश बिष्ट। दोनों में पिता-पुत्र कम और दोस्त की तरह संवाद होता था। पिता बेटे को टाइगर तो बेटा पिता को बिग बॉस पुकारते थे।

घर पर आमने-सामने की बात हो या फिर फोन पर। पिता-पुत्र में बातचीत टागर और बिग बॉस कहकर ही होती थी। चित्रेश ने फोन किया और मां ने फोन उठाया तो चित्रेश पिता से बात करने के लिए मां को कहता था कि बिग बॉस से तो बात कराओ। पिता-पुत्र के बीच यह संवाद अब कभी नहीं होगा। पिता एसएस बिष्ट बार-बार यही कह रहे हैं कि मेरा टाइगर जिंदा दिल था। वह ऐसा नहीं जा सकता था। मुझे बिग बॉस कौन कहेगा।

कुछ नहीं बचा। सबकुछ खत्म हो गया। अब यहां नहीं रहूंगा। क्या करूंगा इस मकान का, गांव चला जाऊंगा। सोनू (चित्रेश) का मंदिर बनाकर वहीं रहूंगा। यहां रखा भी क्या है अब। शहीद मेजर चित्रेश बिष्ट के पिता एसएस बिष्ट को घर पर ढांढ़स बंधाने आ रहे लोगों से बार-बार यही कह रहे थे। बेटे के बचपन से लेकर शहादत से पहले तक की तमाम बातें याद कर वे भावुक होकर कहते-मैंने किसी का क्या बुरा किया, जो मेरे साथ ऐसा हुआ।

सबकुछ ठीक चल रहा था। दोनों बेटे अपने पैरों पर खड़े हो गए थे। अपना कमा-खा रहे थे। किसी चीज की कमी नहीं थी। बस उसकी शादी बाकी रह गई थी। थोड़ा वक्त लग गया लेकिन सोनू ने मौका ही नहीं दिया। ऐसे कोई छोड़कर जाता है क्या?

बेटे चित्रेश (सोनू) की शहादत की खबर के बाद से मां रेखा बिष्ट बेसुध हैं। रविवार शाम तक मां ने पानी का घूंट तक नहीं पिया। उनकी जुबां पर बार-बार बेटे का ही नाम आ रहा है। रिश्तेदार और करीबी महिलाएं उन्हें ढांढ़स बंधाने का प्रयास कर रही हैं।

घर पर मिलने आ रहे लोगों से एसएस बिष्ट बार-बार देहरादून छोड़ देने की बात कहते हैं। बिष्ट कहते हैं, अब यहां रहकर करुंगा क्या? सब छोड़-छाड़कर गांव चला जाऊंगा। यहां जो है, उसी के लिए तो रखा था।

बेटे की शहादत से रिटायर पुलिस अफसर एसएस बिष्ट बुरी तरह टूट गए हैं। सांत्वना देने जो भी घर पर आ रहा है, हाथ जोड़कर ना में सिर हिलाकर जवाब देते हैं। फफक-फफक कर रो पड़ते हैं और फिर शहीद बेटे की बचपन से लेकर अब तक की यादें एक सांस में सबके सामने कहकर धम से बैठ जाते हैं।

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