पिथौरागढ़: यह कहानी उन दो गांवों की है जो जुनून और जिद की मिसाल बन गए। इनका इरादा गांवों के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता बनाने की थी। इरादों के आड़े आ रही थी दोनों गांवों के बीच पूरे वेग से बहती गोरी नदी। नदी पार करने के लिए काफी दूर एक गरारी पुल (रस्सी के सहारे चलने वाली ट्राली) के सिवा और कोई रास्ता नहीं। हौसले ऐसे कि गांव वालों ने बहू लाने और रिश्ता जोड़ने के लिए अपनी जिंदगी तक दांव पर लगा दी। ग्रामीणों की इस जिद, जुनून और दिलेरी को जिसने भी देखा हैरत से उसकी आंखे फटी रह गईं।
दरअसल तहसील बंगापानी के दो गांव मोरी व घुरुड़ी के लोग 2013 के बाद से रोटी-बेटी का रिश्ता जीवंत नहीं रख सके। वजह बनी आपदा। दोनों गांवों के बीच गोरी नदी पर बना पुल बह गया। गांव से कई किमी दूर एक गरारी ही आवागमन का साधन रह गई। इस बीच मोरी गांव के राजेश परिहार का रिश्ता घुरुड़ी गांव की तनूजा के साथ तय हो गया।
अब समस्या थी पूरी बरात को लड़की वालों के गांव तक पहुंचाना। कुछ बराती तो गरारी पुल से नदी पार करने के लिए पैदल यात्रा पर निकल गए। गांव के अन्य साहसी लोगों ने नदी पार करने के लिए दोनों गांवों के बीच के रास्ते पर चीड़ के लट्ठे डाल दिए। सोचा था कि लट्ठों पर लकड़े के पटरे डाल कर अस्थाई पुल तैयार कर लेंगे, लेकिन समय पर पटरों का इंतजाम नहीं हो पाया। लगन का समय नजदीक आ गया।
फिर क्या था, ग्रामीणों ने हिम्मत न हारने का संकल्प लिया। लकड़ी के तीन लट्ठों पर जिंदगी दांव पर लगाकर बराती दुल्हन के गांव पहुंच गई। बरात का स्वागत धूमधाम से हुआ। जब बारी आई दुल्हन की विदाई कराने की तो दुल्हन गरारी पर झूल कर पिया के घर पहुंची। बराती फिर उन्हीं लट्ठों पर जिंदगी से जंग लड़ कर वापस लौटे।
इस दौरान उनके चेहरों पर कोई खौफ नहीं था। बल्कि मौत को मात देकर रोटी-बेटी का रिश्ता कायम कर लेने का सुकून सभी के चेहरों पर तारी हो रहा था। बरात इस पार आई तो हर चेहरे की खुशी और इरादों पर विजय पा लेने का सुकून भी देखने लायक रहा।