प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लगाई गुहार 70 परिवारों ने, हमें ‘पाकिस्तान वाली गली’ से बाहर निकालो

आजादी के दौरान भारत-पाकिस्तान में बंटवारा हुआ। इस दौरान जो भी इस बंटवारे का शिकार हुआ आजादी के 70 साल बाद भी उन दौरान के हादसों का अहसास भर कर भावुक हो जाता है और कुछ ही पल में आंखें नम हो जाती हैं।

इन दिनों दिल्ली से बेहद करीब यूपी के गौतम बुद्धनगर की ‘पाकिस्तान वाली गली’ चर्चा में है। ग्रेटर नोएडा की इस कॉलोनी में रहने वाले लोगों ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिखकर अपनी कॉलोनी का नाम बदलने की गुहार लगाई है।

ग्रेटर नोएडा में इस कॉलोनी का नाम ही ‘पाकिस्तान वाली गली’ है। लोगों ने इसका नाम को बदलने को लेकर पीएम और सीएम से गुहार लगाई है। इस कॉलोनी में रहने वाले लोगों का एक दर्द यह भी है कि इस नाम की वजह से उन्हें सरकार की तरफ से मिलने वाली सुविधाओं से वंचित होना पड़ता है और पाकिस्तान शब्द उनकी आत्मा तक को झकझोर देता है।  

वह सुनना पड़ता है जो पसंद नहीं
यहां पर रह रहे लोगों का सबसे बड़ा दर्द यही है कि उन्हें  ‘पाकिस्तान वाली गली’ के बाशिंदों के तौर पर जाना जाता है। यहां के निवासी कहते हैं कि उन्हें दशकों बाद भी ‘पाकिस्तान वाली गली’ वाला कहलाना बिल्कुल पसंद नहीं है, लेकिन जुबानी गुजारिश करने के बावजूद लोग हमें ‘पाकिस्तान वाली गली’ वाला कहकर ही बुलाते हैं। कागजों में भी यही नाम यानी ‘पाकिस्तान वाली गली’ ही दर्ज है। 

आधार में पता लिखा होता है ‘पाकिस्तान वाली गली’

हमारे आधार कार्ड पर भी ‘पाकिस्तान वाली गली’ लिखा होता है। यहां पर रहने वाले अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए कहते हैं- ‘ 130 करोड़ भारतीयों की तरह हम भी इसी देश का हिस्सा हैं। ऐसे में हमें ही क्यों पाकिस्तान के नाम पर अलग किया जा रहा है और सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है। दादरी नगर पालिका क्षेत्र में पाकिस्तानी वाली गली नाम से एक मोहल्ले में करीब 70 परिवार रहते हैं।

बंटवारे ने दिया एक और दर्द

इतिहासकारों की मानें तो देश के बंटवारे के चलते लोगों ने जान-माल के साथ इज्जत भी खोई, सम्मान भी गंवाया। ऐसा माना जाता है कि जितने लोगों ने प्रथम और द्वतीय विश्व युद्ध में अपनी जान नहीं गंवाई उससे ज्यादा भारत-पाक बंटवारे के दौरान हुए दंगों में जानें गई हैं। जहां तक इस ‘पाकिस्तान वाली गली’ की बात है तो बंटवारे के दौरान इस कॉलोनी में पाकिस्तान से कुछ लोग आकर बस गए थे।

इसके बाद इस कॉलोनी का नाम ‘पाकिस्तान वाली गली’ पड़ गया।  निवासियों के सरकारी डॉक्युमेंट तक में दर्ज पते में पाकिस्तानी वाली गली आज भी दर्ज होता है। पाकिस्तानी गली में रह रहे कुछ हिंदू परिवारों के पुरखे देश के बंटवारे के समय पाकिस्तान के कराची शहर से आकर यहां बसे थे।

70 साल बाद भी पहचान नहीं गई ‘पाकिस्तान वाली गली’ की

यहां पर दशकों से रहे लोगों की मानें तो उनके पूर्वज पाकिस्तान से आकर बस गए थे, क्यां इसमें उनकी कोई गलती नहीं थी। यहां पर रह रहे लोगों का कहना है कि हम भारतीय हैं और हमें इसका गर्व है, लेकिन दर्द बस इतना ही है कि हमें पहचान पाकिस्तान वाली गली की मिली हुई है। 

4 चार लोग आए थे, दशकों बाद बन गया मोहल्ला
यहां पर रह रहे बुजुर्गों ने बताया कि बहुत पहले हमारे पूर्वजों में से सिर्फ 4 लोग ही पाकिस्तान से आकर यहां बसे थे। धीरे-धीरे परिवार बढ़े और आज इसकी आबादी सैकड़ों में है। 

कराची से आकर हिंदुस्तान में बस गए थे

चुन्नीलाल नाम के बुजुर्ग अपने कुछ भाइयों के साथ बंटवारे का दंश झेलते हुए कराची से आकर यहां बसे थे। गौतमपुरी मोहल्ले की जिस गली में पाकिस्तान से आकर वे लोग बसे थे। धीरे-धीरे इसे ‘पाकिस्तान वाली गली’ कहा जाना लगा।

‘पाकिस्तान वाली गली’ गौतमपुरी मोहल्ले का एक छोटा सा हिस्सा है। इसकी एक गली में वर्तमान में तकरीबन 70 परिवार रहते हैं। सभी के सरकारी डॉक्युमेंट से लेकर आधार कार्ड तक में अड्रेस के रूप में पाकिस्तानी वाली गली लिखा हुआ है। 

राजीव राय (एसडीएम दादरी) का भी कहना है- ‘मेरे संज्ञान में अभी तक ऐसा मामला नहीं आया है। मैं नगर पालिका परिषद के अधिशासी अधिकारी से बात करूंगा और कानूनन जो भी हल निकल सकता है हल निकाला जाएगा।’

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