दिसंबर 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध में हमारी जीत का औपचारिक ऐलान आज के ही दिन हुआ था।
इस लड़ाई के दौरान भारत की सेना ने पाकिस्तान के दो गांवों पर कब्जा कर लिया था। ये गांव 28 हजार फीट ऊंचाई वाले दुनिया के दूसरे सबसे ऊंचे पहाड़ कराकोरम के करीब बसे हैं।
1971 युद्ध में इंडियन आर्मी ने रातोंरात पाकिस्तान के इन गांवों पर कब्जा कर लिया था। -15 डिग्री की कड़क ठंड वाले इन गांवों में पहुंचकर पत्रकारों ने लोगों से जानी कब्जे वाले रात की पूरी कहानी.. साथ ही समझा कैसे सुबह आर्मी के चाय देने के चलते 1971 से पहले के इन पाकिस्तानियों को पता चला कि वो इंडिया में आ गए हैं।
आर्मी ने दरवाजा खटखटाया, फिर चाय देकर कहा- वेलकम टू इंडिया…
1971 में 23 साल की रहीं फातिमा बानो ने पत्रकारों से बातचीत में बताया, ’14 दिसंबर को कब्जे वाली रात 8 बजे मैं पाकिस्तान में अपने गांव टुरटुक में सोई थी। अगली सुबह करीब 6 बजे दरवाजा खटखटाने की आवाज आई। गेट खोला तो देखा आर्मी के जवान गर्म चाय लेकर खड़े थे। वो मुझे चाय देकर बोले वेल्कम टू इंडिया…।’
‘ये सुनते ही मेरे हाथ से चाय का प्याला गिर गया। तब हमें पता चला कि कल तक पाकिस्तान में आने वाले हमारे टुरटुक गांव पर इंडिया ने कब्जा कर लिया।’ आज हमारे गांव में 3500 से ज्यादा लोग हैं। ये लेह का सबसे ज्यादा आबादी वाला गांव है। 12 किमी में फैला गांव इतना बड़ा है कि यहां 2 ग्राम प्रधान हैं। सभी इंडिया में बहुत खुश हैं। बता दें कि भारतीय युद्ध इतिहास का ये इकलौता वाक्या है जब रातोंरात चंद घंटों में हमारी आर्मी ने पाकिस्तान अधिकृत गांव या जमीन को कब्जा लिया था।
20 डिग्री सेल्सियस में महज 100 जवानों के साथ किया कब्जा
अभी लेह में आने वाले ये दोनों गांव (टुरटुक और तयाशी) तब पाकिस्तान के बाल्टिस्तान में आते थे। इनमें से टुरटुक पर लेह में मौजूद इंडियन आर्मी के मेजर चेवांग रिनचेन ने 14 दिसंबर की रात 10 बजे कब्जे का प्लान बनाया। -20 टेम्प्रेचर वाली ठंड के बीच मेजर रिनचेन ने अपने 100 जवानों के साथ नदी के रास्ते की जगह पहाड़ पार कर टुरटुक पर कब्जा करने की प्लानिंग की। चूंकि ठंड बहुत ज्यादा थी और पीना का पानी भी जम जा रहा था। इसलिए जवानों ने पानी की बोतल में रम मिलाई और पीते हुए पहाड़ की ओर चल दिए।
दरअसल, उस दौरान पाकिस्तान की आर्मी ईस्ट पाकिस्तान में चल रहे युद्ध में बिजी थी। बाल्टिस्तान वाले भारत-पाक बॉर्डर पर फोर्स ना के बराबर थी। इसी का फायदा उठाकर 4-5 घंटे में रिनचेन ने टुरटुक गांव पर कब्जा कर लिया। इतना ही नहीं, इस युद्ध में भारतीय आर्मी ने पाकिस्तान के 13 हजार स्केवयर किमी एरिया पर भी कब्जा किया था। उस समय के रिनचेन के ऑफिसर अहलूवालिया ने एक इंटरव्यू में कहा था कि रिनचेन ने ये कब्जा बिना आर्मी सपोर्ट, बिना तोपखानों, मिसाइल या युद्ध विमान के ही सिर्फ अपनी बहादुरी और समझदारी के दम पर जीता था।