साल के छह महीने भी नहीं गुजरे हैं कि कोरोना और तूफान अम्फान के बाद अब एक और बड़ा संकट देश के सामने है। राजस्थान में घुसीं टिड्डियां अब देश के दूसरे हिस्सों की ओर बढ़ रही हैं।
इस पाकिस्तानी हमले का निशाना अब यूपी, पंजाब, हरियाणा और मध्यप्रदेश हैं। आमतौर पर जून-जुलाई में आने वालीं ये टिड्डियां अपनी राह में आने वाली सारी फसलें चट करते हुए दिल्ली की ओर बढ़ रही हैं।
आंधियों के दौर वाले इस महीने में टिड्डियां जहां की तरफ हवा चली, वहीं एक-एक दिन में 200-200 किलोमीटर तक तेजी से आगे बढ़ती चली गईं।
पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार फसलों और सब्जियों को इनसे गंभीर खतरा है। मंत्रालय ने सभी राज्यों को अलर्ट भी जारी किया है। इनकी वजह से सिर्फ राजस्थान में बीते वर्ष 1000 करोड़ का नुकसान हुआ था।
विशेषज्ञों के अनुसार इस बार इनका झुंड और बड़ा रहने की आशंका है। ऐसे में पहले से ही संकट झेल रहे किसानों को बड़ा नुकसान हो सकता है।
टिड्डी दल राजस्थान में जैसलमेर, बाड़मेर, श्रीगंगानगर, जोधपुर से दाखिल होकर अब दौसा, सवाईमाधोपुर, करौली और धौलपुर तक पहुंच गए हैं। दो दिन पूर्व टिड्डियों का अत्यधिक बड़ा दल शिवाड़ क्षेत्र में दो दलों में बंट गया।
एक दल इंद्रगढ़ लाखेरी की ओर से, तो दूसरा दल बनास नदी की ओर से मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश की ओर बड़ता गया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि यदि ये कीट एक बार इलाके में घुस गए तो इनका प्रकोप कम से कम तीन साल तक रहेगा। इनके अंडों से करोड़ों की तादाद में टिड्डियां बढ़ेंगी।
आगरार में किसानों को सतर्क रहने को कहा गया है। हालांकि यह भी कहा गया है कि तुरंत कोई चिंता की बात नहीं है। इससे पहले सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, बगापत, हापुड़, मथुरा, गाजियाबाद, और अलीगढ़ में भी अलर्ट जारी किया गया था।
राजस्थान में घुसने के बाद टिड्डियां लगातार हवा के साथ बह रही हैं, इन पर नियंत्रण तभी हो सकता है, जब ये जमीन पर बैठें। रात को इन पर कीटनाशक छिड़का जा रहा है, लेकिन पीछे से फिर उतनी ही संख्या में टिड्डी आ रही हैं। अफ्रीका, ईरान, भूमध्य सागर के देशों में बड़ी संख्या में टिड्डियों के प्रजनन के समाचार भी आ रहे हैं।
पाकिस्तान से टिड्डियों की दल राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और मध्यप्रदेश में प्रवेश कर चुका है। इससे कपास की फसल और सब्जियों को भारी नुकसान का अंदेशा है।
राजस्थान सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य है। इस साल टिड्डियों का दल जल्दी आया है। आम तौर पर ये जून-जुलाई में आती हैं। सभी राज्य इन पर नियंत्रण के लिए अलग-अलग प्रयास कर रहे हैं। -प्रवक्ता, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय