बॉम्बे हाईकोर्ट ने पति की मानहानि की शिकायत को खारिज करते हुए कहा कि वैवाहिक विवाद में लगाए गए आरोप अगर उचित संदर्भ में हैं, तो उन्हें मानहानि नहीं कहा जा सकता।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने अपनी पत्नी और उसके परिवार के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज करने की मांग की थी। व्यक्ति का आरोप था कि उसकी पत्नी ने तलाक की कार्यवाही के दौरान उसे नपुंसक कहा, जो मानहानि है। लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई महिला वैवाहिक विवाद में अपने अधिकारों की रक्षा के लिए इस प्रकार के आरोप लगाती है, तो वह मानहानि की श्रेणी में नहीं आता।
‘महिला के आरोप विवाह खत्म करने के लिए जरूरी थे’
न्यायमूर्ति एस. एम. मोडक की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत जब कोई तलाक की याचिका दायर की जाती है, तो उसमें नपुंसकता जैसे आरोप प्रासंगिक होते हैं और ऐसे आरोप लगाना पत्नी का अधिकार है। अदालत ने यह भी कहा कि महिला ने अपने पति के खिलाफ जो आरोप लगाए, वे क्रूरता साबित करने और विवाह समाप्त करने के लिए जरूरी थे। इसलिए ये आरोप उसकी निजी रक्षा में लगाए गए हैं और उन्हें मानहानि नहीं माना जा सकता।
‘पत्नी ने तलाक के FIR में पति को बताया था नपुंसक’
पति का कहना था कि उसकी पत्नी ने तलाक और भरण-पोषण की याचिकाओं में तथा दर्ज एफआईआर में उसे नपुंसक कहा, जो सार्वजनिक रिकॉर्ड में है और उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाती है। इस पर पत्नी और उसके परिवार ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें मजिस्ट्रेट को मानहानि की शिकायत पर जांच करने को कहा गया था। हाईकोर्ट ने 17 जुलाई को पारित आदेश में स्पष्ट किया कि पति के खिलाफ लगाए गए आरोप सिर्फ पत्नी के बचाव और वैवाहिक विवाद के संदर्भ में थे, इसलिए वह मानहानि का आधार नहीं बनते।