दुर्घटना से देर भली: जहां सुविधाएं वहां जान बचने की उम्मीद ज्यादा, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

देश में होने वाले सड़क हादसों को लेकर विश्व बैंक व सेव लाइफ फाउंडेशन की तरफ से किए गए अध्ययन में उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र व तमिलनाडु को शामिल किया गया। उत्तर प्रदेश व बिहार को कम क्षमता वाले प्रदेशों (एलसीएस) की श्रेणी में रखा गया, जबकि महाराष्ट्र व तमिलनाडु को उच्च क्षमता वाले प्रदेशों (एचसीएस) में। साफ है कि कम क्षमता वाले उत्तर प्रदेश व बिहार की जहां आबादी बड़ी है, वहीं स्वास्थ्य समेत अन्य सुविधाओं का अभाव है।

इसकी वजह से इन प्रदेशों में महाराष्ट्र व तमिलनाडु जैसे अपेक्षाकृत बेहतर सुविधा वाले प्रदेशों के मुकाबले जान बचने की दर कम रही। उच्च क्षमता वाले प्रदेशों में सड़क हादसों के बाद जान बचने की दर जहां 77 फीसद आंकी गई, वहीं कम क्षमता वाले प्रदेशों में यह दर 61 प्रतिशत रही। यही नहीं, मृत्युदर के मामले में अमीरी और गरीबी का अंतर साफ दिखा।

परिवार की आय हो अच्छी तो दुर्घटना पीड़ित के बचने की बढ़ जाती है उम्मीद: अध्ययन के अनुसार, हादसे के बाद पीड़ितों की जान बचने की संभावना इस बात पर भी निर्भर करती है कि उनके परिवार की आय कैसी है। हादसे के बाद उच्च आय वाले घरों (एचआइएच) के लोगों की मौत की दर कम रही, जबकि कम आय वाले घरों (एलआइएच) के सदस्यों की ज्यादा। रिपोर्ट में बाताया गया है कि हादसे के बाद एचआइएच वर्ग के 87.5 फीसद लोग की जान बच गई, जबकि एलआइएच में यह दर महज 64 प्रतिशत रही। गरीब व अमीर वर्ग के लोगों पर पड़ने वाले प्रभावों में बड़े अंतर के कई कारण हैं, जिनमें हादसे बाद तत्काल दी जाने वाली चिकित्सकीय सुविधा, लंबे इलाज पर होने वाले खर्च को वहन करने की क्षमता और हादसे बाद की देखभाल शामिल हैं। हादसे की प्रकृति और पीड़ित द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले वाहन की गुणवत्ता भी उसके बचने की संभावनाओं को प्रभावित करते हैं।

अध्ययन के दौरान पाया गया कि उत्तर प्रदेश और बिहार में हादसे के वक्त जान गंवाने वाले एलआइएच वर्ग के ज्यादातर लोग साइकिल, ऑटो या रिक्शा से अथवा पैदल यात्रा कर रहे थे। रिपोर्ट में कम क्षमता वाले राज्यों को वलरेनैबल रोड यूजर (वीआरयू) के लिए अलग से बुनियादी सुविधा विकसित किए जाने की सलाह दी गई है। यह भी कहा गया है कि राज्यों को उन जिलों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए जहां वीआरयू से जुड़े हादसे ज्यादा हो रहे हों।

एलसीएस व एचसीएस का निर्धारण: एलसीएस में देश के गरीबों की बड़ी आबादी रहती है। ये अपेक्षाकृत कम विकसित हैं और यहां शिक्षा का स्तर भी कम है। इसके अलावा प्रदेशों के वर्गीकरण में शहरी आबादी, साक्षरता दर, गरीबी दर, प्रति व्यक्ति आय आदि पहलुओं का भी ध्यान रखा जाता है। एचसीएस में हादसे के बाद लोगों के बचने की समग्र दर 77 फीसद रही, जबकि एलसीएस में 61 प्रतिशत। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में एलआइएच के लोगों की मृत्युदर सबसे ज्यादा रही। प्रदेश में एलआइएच के 50 फीसद पीड़ितों की हादसों के बाद मौत हो गई, जबकि एचआइएच की मृत्युदर 18 फीसद रही।

 

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