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अध्यक्ष का पद पश्चिम के किसी नेता को दिया जाना तय माना जा रहा है। ऐसे में कठेरिया, राजेश कुमार दिवाकर और भोला सिंह को अध्यक्ष पद की कमान मिलने की संभावना ज्यादा है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इस मामले में संघ से भी चर्चा की है। दोनों के बीच किसी दलित नेता को अध्यक्ष पद की कमान सौंपने की लगभग सहमति बन चुकी है।
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यूपी की रणनीति से जुडे़ संघ के एक शीर्ष पदाधिकारी का कहना है कि भाजपा को भावी राजनीति के मद्देनजर दलित बिरादरी को साधना बेहद जरूरी है। इस कवायद में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद की कमान किसी दलित नेता को सौंपना बेहद जरूरी है। विधानसभा चुनाव में बेशक भाजपा की ऐतिहासिक जीत हुई है।
मगर यदि मायावती के दलित वोटों के साथ अल्पसंख्यक मतों का जुड़ाव हो जाता तो पश्चिमी यूपी में भाजपा की राह मुश्किल हो सकती थी। विधानसभा चुनाव में जिन सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है वहां के वोट गणित जताते हैं कि मुस्लिमों ने भाजपा के खिलाफ एकमुश्त वोट दिया। लेकिन यह ट्रेंड कुछ सीटों तक ही सीमित रहा। संघ का आंकलन है कि बसपा के जरिए मुस्लिम कार्ड खेलने के बावजूद भी अधिकांश मुस्लिमों की पसंद सपा रही है।
भाजपा के लिए ऐतिहासिक परिणाम लाने में इस समीकरण की भूमिका अहम रही है। पर यह लंबे समय तक जारी नहीं रह सकता है। लोकसभा चुनाव 2019 में दलित-मुस्लिम गठजोड़ भाजपा की नींद न हराम करे इसके लिए पार्टी और संघ दोनों के ही शीर्ष नेतृत्व को दलित मतों की चिंता सताने लगी है।
इसे अपनी ओर लाने के लिए भगवा परिवार को सूबे की कमान किसी दलित को सौंपना सबसे मुफीद लग रहा है। योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के साथ केशव मौर्य और दिनेश शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाकर पार्टी ने अगड़ा-पिछड़ा के समीकरण को बखूबी साध लिया है।
दलित को यूपी भाजपा की कमान सौंपने के पीछे भगवा परिवार का यह भी तर्क है कि केशव प्रसाद मौर्य को अध्यक्ष बनाने का उसका दांव कारगर रहा है। विधानसभा चुनाव में प्रदेश की पिछड़ी जाति ने जमकर भाजपा का साथ दिया।
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केशव का व्यक्तित्व बेशक प्रभावी न रहा हो मगर उनके नाम के आगे जुडे़ मौर्य उपनाम की वजह से यूपी के सैनी, शाक्य, बघेल और कुशवाहा बिरादरी के लोगों ने उन्हें अपना नेता माना और भाजपा को भरपूर वोट दिया।
संघ के शीर्ष अधिकारी का कहना है कि भाजपा की जीत में तमाम मुद्दों में सबसे बड़ा योगदान अति पिछड़ी बिरादरी का पार्टी के साथ आना है। यदि जीत के मामले को लेकर जीते हुए विधायकों की राय ली जाएगी तो उनका भी यही मानना है।