एजेंसी/पांच दशक में तीन पीढिय़ां आ गईं। महंगाई लगातार बढ़ती ही गई। कमोबेश उतनी ही रफ्तार से जरूरतें भी बढ़ती गईं। तब और अब की बात करें तो ये खाई इतनी चौड़ी हो गई कि दादा सवा 100 रुपए महीना की नौकरी में पूरे परिवार को मजे से पालते थे उसी परिवार के पौते के लिए अब 30 से 40 हजार रुपए महीना में भी घर चलाना मुश्किल हो गया। दादा जितने रुपए से पूरे परिवार को पालते थे उतने में तो पाते का मोबाइल बिल भी नहीं भरता। आम बजट के बाद और राज्य बजट आने से ठीक पहले पत्रिका ने शहर के कुछ परिवार के दादा-पोता के माध्यम से तब की आय और खर्च के इस गणित को समझाने की कोशिश की है।
तब 1953 में : पोस्टमास्टर दादा 117 रुपए में चलाते थे परिवार
मोहनलाल सोलंकी (83 ), रिटायर्ड हेड पोस्टमास्टर हैं। सन 1953 में 117 रुपए महीना की तनख्वाह में नौकरी लगी और 1992 को 9500 की तनख्वाह में रिटार्डमेंट लिया। साठ के दशक में चार सदस्यों का परिवार चलता था।60 रुपए में घर खर्च : 60 रुपए में महीने भर का राशन आ जाता। लाइफबॉय और सनलाइट साबुन 5 आने का आता था, जो पूरे महीने चलता। आसपास पैदल ही आना जाना होता था। दूर जाना होता तो साइकल ले जाते थे। साइकिल भी 110 रुपए में आती थी। हर दिवाली 2 जोड़ी कपड़े सिलवाते। तब ट्वीड ब्रांड का सूट 70 रुपए में पड़ा था। सात रुपए महीना किराया पर अच्छा मकान मिल जाता था। हर फिल्म देखते थे।
अब एमआर पोते देवेन्द्र के लिए 32 हजार भी कम पड़ जाते हैं
पोते देवेंद्र (32) यू.एस.वी. में मेडिकल रिप्रेजेंन्टेटिव हैं। इन्हें 32 हजार रुपए मासिक तनख्वाह मिलती है। तीन सदस्यों का परिवार पत्नी और 4 वर्षीय बेटी है।चार हजार में किराणा : चार हजार रुपए का महीने में किचन का सामान आता है, जिसमें से 1000 रुपए का तो दूध आता है। दो हजार रुपए तो बाथरूम, सौन्दर्य प्रसाधन पर ही खर्च हो जाते हैं। इतने ही पेट्रोल पर ही खर्च हो जाते हंै, आधे किलोमीटर से ज्यादा कभी पैदल चलने का काम नहीं पड़ता। 30 से 35 हजार रुपए के साल भर में कपड़े खरीद लेते हंै। बेटी का प्री प्राइमरी में 20 हजार रुपए सालाना पर प्रवेश कराया।
1954 में : 50 रुपए की नौकरी देखकर आए गए थे कई रिश्ते
अयोध्या प्रसाद भटनागर (81 ) सेवानिवृत अध्यापक हैं। आठ सदस्यों का परिवार। सन 1954 में 50 रुपए मासिक वेतन पर अध्यापक की नौकरी लगी तो लड़की वाले रोज घर आते थे। एक रुपए सालाना इन्क्रीमेंट पर खुश हो जाते। 1985 में 20 बालिकाओं का नामांकन करवाने पर पत्नी को सरकारी नौकरी मिल गई। पोस्ट ऑफिस में 20 – 20 रुपए का मासिक खाता खुलवाया।खर्च : 250 रुपए वेतन के समय 125 रुपए में राशन आ जाता। शाम को मित्र मण्डली के साथ भजन संध्या कर मनोरंजन कर लेते थे। इतने से खर्च में मेरा पूरा परिवार चल जाता था। कपड़ों का शौक था तो आधी तनख्वाह तो कपड़ों पर खर्च हो जाती थी।
सोसायटी में लिपिक बेटे धनेश का 40 हजार में चल रहा घर
अयोध्या प्रसाद के 40 वर्षीय बेटे धनेश भटनागर पाली अरबन को ओपरेटिव सोसायटी में लपिक हैं। इन्हें 40 हजार रुपए मासिक मिलते हैं, जिससे 5 बच्चों का परिवार चलता है। कहते हैं इसमें भी बचत मुश्किल हो जाती है।खर्च : 6000 रुपए महीने भर में राशन में ही खर्च हो जाते हैं। दो हजार रुपए पेट्रोल का खर्च है वो भी तब जब मैं आसपास तो पैदल ही जाना पसंद करता हूं, लेकिन गाड़ी है तो चलती ही है। त्योहार पर घर परिवार वालों के साथ कपड़े खरीद लेता हूं। बचत की स्कीम से जमा हुए पैसे से बेटी की शादी की इसलिए ज्यादा दिक्कत नहीं आई।
1948 में : हलवाई मगनीराम दुकान से कमाते थे 40 रुपए
पेशे से हलवाई मगनीराम माली (98) चार सदस्यों का परिवार चलाते थे। 1948 में पाली में 13 रुपए मासिक किराये पर दुकान लेकर हलवाई का काम शुरू किया। 35-40 रुपए महीना आमदनी होती थीखर्च : राशन का 12-13 रुपए खर्च आता था। त्योहार पर ही कपड़े लेते थे। कारी लगवा कर काम चलाते थे। चार बच्चों को पढ़ाने का 200 रुपए सालाना खर्च आता था। चारों बेटों को दसवीं तक पढ़ाया। बीमार होने पर वैद्यराज के पास जाते थे, बहुत ही मामूली खर्च में इलाज हो जाता था। खेल-खेल में मनोरंजन कर लेते थे। पैदल ही सफर करते थे, अगर कहीं दूर जाना है तो साइकल से जाता था।
विरासत संभालने वाला बेटा मुकेश 30 हजार में चला रहा घर
मुकेश माली (28) पांच सदस्यों का परिवार चलाते हैं। दादा के समय शुरू हुए कारोबार से अब 30 हजार रुपए आय होने लगी है। आय बढ़ी तो खर्च भी कई गुना बढ़ गया। दस हजार रुपए तो राशन सामग्री में ही खर्च हो जाते हंै। दो हजार डियो, शेम्पू, सौन्दर्य प्रसाधन पर खर्च हो जाते हंै। साल में 8-10 जोड़ी ड्रेस खरीदता हूँ। डेढ़ हजार से कम कम में कोई ड्रेस नहीं आती। चार-पांच जोड़ी तो जूते हंै। बेटी को अभी एलकेजी में भर्ती करवाया है, जहां 20 हजार रुपए सालाना फीस है। 1200 रूपये मोबाइल बिल पर खर्च हो जाते हंै। गाड़ी से आता जाता हूं, जिस पर 2000 खर्च हो ही जाते हैं।