जितिया व्रत को शुभ माना जाता है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की सलामती के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करती हैं। इस व्रत को लेकर कई महत्वपूर्ण नियम बनाए गए हैं जिनका पालन हर किसी के लिए जरूरी है इनमें से एक इसकी कथा (Jitiya Vrat 2024 Katha) का पाठ भी है तो आइए पढ़ते हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत का विशेष महत्व जाता है। इसे जितिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, आज यानी 25 सितंबर, 2024 को व्रत किया जा रहा है। इस पर्व की शुरुआत एक दिन पहले यानी नहाय खाय के साथ होती है। ऐसा कहा जाता है कि यह व्रत माताएं अपनी संतान की सलामती के लिए रखती हैं।
इस कठिन व्रत (Jitiya Vrat 2024) का पालन करने से बच्चों को स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्त होती है। वहीं, इस दिन जितिया व्रत कथा (Jivitputrika Vrat Katha) का पाठ भी अवश्य करना चाहिए, जो इस प्रकार है।
जितिया व्रत कथा (Jitiya Vrat 2024 Katha In Hindi)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय की बात है, गंधर्वों के राजकुमार जीमूतवाहन अपने परोपकार और पराक्रम के लिए जाने जाते थे। एक बार जीमूतवाहन के पिता उन्हें राजसिंहासन पर बिठाकर वन में तपस्या के लिए चले गए। लेकिन उनका मन राज-पाट में नहीं लगा, जिसके चलते वे अपने भाइयों को राज्य की जिम्मेदारी सौंप कर अपने पिता के पास उनकी सेवा के लिए चले जा पहुंचे, जहां उनका विवाह मलयवती नाम की कन्या से हुआ।
एक दिन भ्रमण करते हुए उनकी भेंट एक वृद्ध स्त्री से हुई, जो नागवंश से थी। वह बहुत ज्यादा दुखी और डरी हुई थी। उसकी ऐसी हालत देखकर जीमूतवाहन ने उनका हाल पूछा, जिसपर उस वृद्धा ने कहा कि नागों ने पक्षीराज गरुड़ को यह वचन दिया है कि वे प्रत्येक दिन एक नाग को उनके आहार के रूप में उन्हें देंगे। उस स्त्री ने रोते हुए बताया कि उसका एक बेटा है, जिसका नाम शंखचूड़ है। आज उसे पक्षीराज गरुड़ के पास आहार के रूप में जाना है।
जैसे जीमूतवाहन ने वृद्धा की हालत देखी उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि वो उसके पुत्र के प्राणों की रक्षा जरूर करेंगे। अपने कहे हुए वचनों के अनुसार, जीमूतवाहन पक्षीराज गरुड़ के समक्ष गए और गरुड़ उन्हें अपने पंजों में दबोच कर साथ ले गए। उस दौरान उन्होंने जीमूतवाहन के कराहने की आवाज सुनी और वे एक पहाड़ पर रुक गए, जहां जीमूतवाहन ने उन्हें पूरी घटना बताई।
तब पक्षीराज उनके साहस और परोपकार को देखकर दंग रह गए और प्रसन्न होकर उन्होंने जीमूतवाहन को प्राणदान दे दिया। साथ ही उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि वे अब किसी नाग को अपना आहार नहीं बनाएंगे। तभी से संतान की सुरक्षा और उन्नति के लिए जीमूतवाहन की पूजा का विधान है, जिसे लोग आज जितिया व्रत के नाम से भी जानते हैं। कहा जाता है कि इस कथा के बिना जितिया व्रत (Jivitputrika Parv Ke Niyam) अधूरा होता है, इसलिए इसका पाठ जरूर करना चाहिए।