गणेश चतुर्थी पर ऐसे करे भगवान गणेश की पूजा बन जाएगे सभी बिगड़े काम

आज वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि है, जिसे विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। आज विनायक चतुर्थी के दिन विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश जी की पूजा विधि विधान से की जाती है। विधिपूर्वक व्रत और आराधना करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और भक्तों को उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। आज के दिन पूजा में उनको मुख्य रूप से 5 चीजों को ​अर्पित करना न भूलें। आज श्री गणेश महामंत्र का जाप करने से सुख-समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है।


विनायक चतुर्थी मुहूर्त

वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 26 अप्रैल दिन रविवार को दोपहर 01 बजकर 22 मिनट पर हो चुका है, जो आज 27 अप्रैल दिन सोमवार को दोपहर 02 बजकर 29 मिनट तक है। विनायक चतुर्थी की पूजा दोपहर में होती है, जो आज की जाएगी। इसका मुहूर्त 02 घण्टे 38 मिनट का बना है। आप आज दिन में 11 बजे से दोपहर 01 बजकर 38 मिनट के मध्य श्री गणेश जी की पूजा संपन्न कर लें। यह पूजा का शुभ मुहूर्त है।

चंद्रोदय का समय

आज विनायक चतुर्थी के दिन चंद्रोदय का समय रात 08 बजकर 34 मिनट पर है।

विनायक चतुर्थी व्रत और पूजा का महत्व

इस पृथ्वी पर कोई भी व्यक्ति, जो संकटों से घिरा हुआ है, उसे गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहिए। भगवान गणेश उनके संकटों का नाश करेंगे और उनके जीवन में सुख, समृद्धि, सफलता और आनंद भर देंगे।

विनायक चतुर्थी: व्रत एवं पूजा विधि

आज सुबह स्नान आदि से निवृत हो जाएंं। फिर शुभ मुहूर्त में गणेश जी की पूजा करें। उनको धूप, दीप, गंध, अक्षत्, सिंदूर आदि ​अर्पित करें। पूजा में पांच वस्तुएं लाल फूल, केला, पान का पत्ता, सुपारी और दूर्वा जरूर चढ़ाएं। अब उनको 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। पूजा के समय ओम गणेशाय नम: मंत्र का जाप करें। अंत में गणेश जी की आरती करें तथा प्रसाद ब्राह्मणों तथा परिजनों में वितरित कर दें।

प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमानमिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानम्।

तं तुन्दिलं द्विरसनाधिपयज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयो: शिवाय।।

प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्तशोकदावानलं गणविभुं वरकुञ्जरास्यम्।

अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाहमुत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्य।।

गणेश जी को पुष्प माला अर्पित करने का मंत्र

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो,

मयाहृतानि पुष्पाणि गृह्यन्तां पूजनाय भोः।

गणेश जी को प्रसाद अर्पित करने का मंत्र

नैवेद्यं गृह्यतां देव भक्तिं मे ह्यचलां कुरू,

ईप्सितं मे वरं देहि परत्र च परां गरतिम्,

शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च,

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