टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, बोर्ड द्वारा नियमों में बदलाव करने से सबसे ज्यादा फायदा उन होम बायर्स को होगा, जिन्होंने जेपी इंफ्राटेक व आम्रपाली जैसी डिफॉल्टर कंपनियों से फ्लैट खरीदा हुआ है। पिछले हफ्ते बोर्ड द्वारा इन नियमों को नोटिफाई किया गया था।
इससे अब बैंक केवल अपने हित नहीं साध सकेंगे। अभी बैंक केवल अपने हितों को देखते हुए ही कंपनी लॉ बोर्ड में किसी भी लोन डिफॉल्टर कंपनी के खिलाफ दिवालिया घोषित करने के लिए आवेदन कर सकते हैं। बैंक अक्सर उस कमेटी का हिस्सा होते हैं, जो कंपनी के दिवालिया घोषित करने के लिए बनाई जाती है।
बायर्स के हितों का भी रखना होगा ध्यान
अब बैंकों को ऐसी रियल इस्टेट कंपनियों में फंसे बायर्स के हितों का ध्यान रखना होगा। फिलहाल पिछले साल बनाए गए नियमों के अनुसार किसी भी लोन डिफॉल्टर कंपनी को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया को 6 महीने में पूरा करना होगा। इसमें केवल तीन महीनों की बढ़ोतरी और हो सकती है। इसके लिए एक इनसॉल्वेंसी रिजॉलूशन प्रोफेशनल (आईआरपी) को नियुक्त किया जाता है जो कंपनी के ऑपरेशन का चार्ज लेता है और प्लान ऑफ एक्शन भी तैयार करता है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने नोएडा में जेपी विश टाउन प्रोजेक्ट के 40 फ्लैट खरीदारों की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही थी।
इन खरीदारों ने दिवालिया संहिता, 2016 के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी थी। हालांकि शीर्ष अदालत ने कहा कि वह ऐसे मामलों में और मुकदमे दायर होने देना नहीं चाहती है। पीठ ने कहा कि हम फ्लैट खरीदारों की मदद करना चाहते हैं, न कि और मुकदमे। पीठ में न्यायाधीश न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ भी थे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि खरीदारों को हर हाल में फ्लैट मिल जाएं।’ पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकील राशिद सईद से कहा कि वह जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड के खिलाफ दिवालिया कानून से संबंधित मामले में पहले ही एमिकस क्यूरी के तौर पर वकील शेखर नेफाडे की नियुक्ति कर चुकी है।
लिहाजा सईद दिवालिया मामले की प्रक्रिया में एक पक्षकार के तौर पर आवेदन कर सकते हैं। याचिकाकर्ताओं के वकील ने पीठ को बताया कि इन खरीदारों ने 2013 में फ्लैट बुक कराए थे और उन्हें पिछले साल ही कब्जा मिलने वाला था। लेकिन मोटी रकम चुकाने के बावजूद उन्हें अब तक फ्लैटों का कब्जा नहीं मिल पाया है।