फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीट पर मध्यावधि चुनावों के नतीजे कुछ भी आएं, भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली मोदी सरकार के लिए यह नतीजे 2019 के आम चुनावों से पहले ट्रेलर साबित होगा. इन चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन मोदी सरकार के चार साल के कार्यकाल पर उत्तर प्रदेश का पहला आंकलन होगा. गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में इन दोनों सीटों पर बीजेपी को 86 हजार और 90 हजार वोटों से जीत मिली थी और राज्य की कुल 80 लोकसभा सीटों में पार्टी ने 73 सीटों पर जीत दर्ज की थी.
भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में इन दोनों सीटों पर जीत ऐसे वक्त में दर्ज की थी जब केन्द्र में कांग्रेस सत्तारूढ़ थी और राज्य में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी सत्ता में रही. यह इसलिए भी अहम हो जाता है कि फूलपुर सीट पर कांग्रेस के करिश्माई नेता जवाहरलाल नेहरू ने चुनाव जीता था, तो हाल की राजनीति में समाजवादी पार्टी के नजदीकी बाहुबली अतीक अहमद को यहां से सांसद चुने जाने का गौरव मिला. वहीं गोरखपुर सीट की बीजेपी के लिए अहमियत इसलिए भी है कि यहां से लगातार पांच चुनाव जीतने वाले योगी आदित्यनाथ को 2017 में राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया.
फूलपुर और गोरखपुर के ये उपचुनाव उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए इसलिए भी अहम हैं क्योंकि दो दशक की प्रतिद्वंदिता के बाद दोनों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी अपनी प्रतिद्वंदिता को किनारे कर सांठगांठ के साथ बीजेपी को मात देने की कोशिश में हैं. बहुजन समाज पार्टी ने दोनों सीटों पर समाजवादी पार्टी के पक्ष में उम्मीदवार नहीं उतारते हुए साफ संकेत दे दिया है कि यदि उसका यह फॉर्मूला सफल हुआ तो 2019 के आम चुनावों में बीजेपी के सामने यही साठगांठ कड़ी चुनौती देगा. हालांकि राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की इस साठगांठ से फिलहाल दूर रहते हुए दोनों सीटों पर अपना उम्मीदवार दिया है.
रविवार को दोनों सीटों के लिए हुए मतदान में जहां गोरखपुर में 43 फीसदी मतदान हुआ वहीं फूलपुर में महज 37 फीसदी मतदान दर्ज हुआ था. 2014 के आम चुनावों में यहां से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने भारी जीत दर्ज की थी. इसके चलते भी इन चुनावों के नतीजे केन्द्र सरकार के लिए मायने रखने के साथ-साथ राज्य के लिए भी प्रतिष्ठा का बड़ा सवाल है.
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