देहरादून: प्रदेश में इन दिनों कांग्रेसी दिग्गज ‘अपनी ढपली अपना राग’ अलाप रहे हैं। प्रदेश संगठन से इतर पार्टी के भीतर ही बड़ी लाइन खींचने को आतुर नेताओं के अलग-अलग सुरों के बूते पार्टी सरकार और संगठन के लिहाज से मजबूत भाजपाई किले को भेद पाएगी, इसे लेकर संदेह दूर होने के बजाय और गहरा गया है।
ऐसे में नगर निकाय चुनाव में कांग्रेस जीत या दमदार मौजूदगी से अपने विरोधियों को चौंकाएगी या इस चुनाव में भी विधानसभा चुनाव जैसी गत होगी, ये सवाल इन दिनों सियासी गलियारों में तैर ही रहे हैं, कांग्रेस के रणनीतिकारों को भी परेशान किए हुए हैं।
कांग्रेस के लिए प्रदेश में ‘करो या मरो’ की नौबत है। विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त मिलने के बाद से ही पार्टी को अंदर और बाहर विभिन्न मोर्चों पर चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। संकट की इस घड़ी में कांग्रेस की नैया को पार लगाने के लिए पार्टी में एकजुटता को जरूरी माना जा रहा है। बावजूद इसके कांग्रेसी दिग्गजों के बीच खींचतान थमती दिख नहीं रही है।
विधानसभा चुनाव के दस माह गुजरने के बाद अब तक पार्टी के तमाम क्षत्रप पूरी ताकत से एक साथ खड़े नजर नहीं आए। नगर निकाय चुनाव को ध्यान में रखकर पार्टी की ओर से शक्ति प्रदर्शन के रूप में निकाली गई मोटरसाइकिल रैली के दौरान भी खींचतान साफ नुमायां हो चुकी है।
यह सिलसिला अभी थमा नहीं है। प्रदेश संगठन और कद्दावर नेताओं के बीच संवादहीनता बनी हुई है। पार्टी में सभी के साथ होने के दावे के बावजूद सतह पर ऐसे हालात नहीं है कि इन दावों पर भरोसा किया जा सके।
कई बड़े नेताओं में अब भी प्रदेश संगठन के नए नेतृत्व के साथ खड़े होने या तालमेल बनाने को लेकर हिचक साफ दिखाई देती है। पार्टी पर अपने व्यक्तिगत सियासी महत्वाकांक्षाओं को ज्यादा तरजीह दिए जाने की जोर-आजमाइश का खामियाजा विधानसभा चुनाव में करारी हार के रूप में सामने आ चुका है।
पार्टी में टूट का फायदा भाजपा ने बखूबी उठाया। माना जा रहा है कि निकाय चुनाव में अपने प्रदर्शन में सुधार को लेकर मुस्तैद दिख रही पार्टी को कामयाबी तब ही मिलेगी, जब अलग-अलग सुरों को एक साथ साधा जाए। हालांकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह का कहना है कि पार्टी नेताओं में किसी तरह के मत भिन्नता नहीं है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का दावा है कि पार्टी में सब लोग साथ हैं।