हल्द्वानी: सहकारिता में वर्चस्व एवं कब्जा बरकरार रखने के लिए कांग्रेस ने एकजुटता का संदेश देने के सम्मेलन का आयोजन किया था। साथ ही इसके जरिए सरकार को भी संकेत देना था कि प्रशासक बैठाने की बजाय समय पर सहकारी समितियों के चुनाव कराए। कांग्रेस ने कुमाऊं भर के पदाधिकारियों व सहकारिता से जुड़े दिग्गजों को बुलाकर खुद एकजुटता का संदेश देना चाहा।
बावजूद इसके वरिष्ठ नेताओं की नसीहत ने पार्टी के भीतर की गुटबाजी को फिर उभारकर ला दिया। करीब तीन घंटे चले सम्मेलन में प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश के बयान एवं मोबाइल पर पूर्व सीएम हरदा का संबोधन एक-दूसरे पर कटाक्ष करता दिखा। इंदिरा एवं प्रीतम ने तो मंच से ही ऐसे बयान दिए जो सीधे हरदा के लिए नसीहत के रूप में थे।
गुटबाजी वाले बयानों पर की जाए सख्ती
सम्मेलन में नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा का तल्ख तेवर पहले सरकार के शिक्षा राज्य मंत्री के लिए दिखा तो फिर वह अपनी पार्टी में नेतृत्व करने वालों पर बरसीं। बोलीं, नेतृत्व की ओर से ऐसे बयान मीडिया में न आएं जिससे गुटबाजी नजर आए। प्रदेश अध्यक्ष जी ऐसे बयानों पर सख्त रुख अपनाएं। इनसे ही कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है। कार्यकर्ताओं को अधिकार है कि वह अपना गुस्सा हमें दिखाएं, लेकिन नेतृत्व करने वालों की इसकी छूट नहीं दी जानी चाहिए।
डॉ. इंदिरा के इशारा हरदा की ओर ही था यह स्पष्ट नजर आया। दरअसल हाल में देहरादून व हल्द्वानी में हुए दो बड़े आयोजनों में न बुलाए जाने से नाराज हरदा ने डॉ. इंदिरा एवं प्रीतम दोनों पर ही खूब शब्दबाण चलाए थे।
मुझे नहीं खड़ी करनी प्रीतम कांग्रेस
प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने भी पार्टी में गुटबाजी एवं लामबंदी को लेकर बहुत कुछ बयां कर दिया। बोले, मुझे सोनिया-राहुल गांधी की कांग्रेस स्थापित करनी है, न कि प्रीतम कांग्रेस। हम कहते तो हैं कि एकजुट हैं और मिलकर चुनाव लड़ेंगे, बावजूद इसके हम सुधरते नहीं हैं। ऐसे में कार्यकर्ताओं का जिम्मा भी है कि प्रदेश अध्यक्ष भी गलत करे तो उसे टोकें।
चुनाव में टिकट एवं सीटों के समीकरण पर भी प्रीतम बोले, मुझे एमपी का चुनाव लडऩा होगा तो टिहरी से लडूंगा और विधायकी को चकरौता से, लेकिन मुझे दूसरी सीटों के समीकरण बनाने-बिगाडऩे क्या मतलब। मुझे केवल वहां के लिए सहयोगी बनना चाहिए। प्रीतम सिंह ने अपने पर ही उदाहरण फिट करते हुए यहां से संदेश कुछ वरिष्ठों को भी दे दिया।