आधार को अनिवार्य कराने के विरोध से जुड़े मामले की अंतिम सुनवाई बुधवार से सुप्रीम कोर्ट में शुरू हो चुकी है। याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के सामने जिरह करते हुए कहा है कि यूनीक आइडेंटिटी नंबर्स के इस्तेमाल से नागरिक अधिकार समाप्त हो जाएंगे और नागरिकता दासत्व तक सिमट जाएगी।
वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने बेंच के सामने यह तर्क दिया कि अगर आधार को अनिवार्य किया गया तो लोगों के मूलभूत अधिकारों से समझौते जैसा होगा। उन्होंने कहा कि यह नागरिकों के जीवन की निगरानी करने वाला एक उपकरण बन सकता है। कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व जज केएस पुट्टास्वामी और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं की तरफ से मामले में पेश हुए दिवान ने तर्क दिया कि किसी भी लोकतांत्रिक देश ने इस तरह की स्कीम को स्वीकार नहीं किया है।
सीनियर ऐडवोकेट ने कहा कि आधार जैसी स्कीम लोगों के अधिकार और स्वतंत्रता के सिद्धांत के खिलाफ है। दीवान ने कहा कि सरकार के हाथ में आकर आधार उत्पीड़न का साधन बन सकता है और इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। दीवान ने सुप्रीम कोर्ट की बेंच से कहा कि याचिकाकर्ता इस बात को लेकर निश्चित हैं कि अगर आधार ऐक्ट और प्रोग्राम को बिना किसी बाधा के संचालित करने की अनुमति दी जाती है तो यह संविधान को खोखला कर देगा।
इसपर दीवान ने जवाब दिया कि सरकार ने आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है। दीवान ने कहा कि आधार स्कीम के तहत सारी जानकारी एक सेंट्रल डेटा बेस से कनेक्ट रहेगी। सरकारी एजेंसियां इसका दुरुपयोग कर नागरिकों की प्रोफाइलिंग और उनकी गतिविधियों की निगरानी कर सकती हैं। दीवान ने तर्क दिया कि यह प्रोफाइलिंग आगे चलकर राज्य को किसी असंतोष को कुचलने और राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित करने में सक्षम बना सकती है।