आपको जंगल बुक का मोगली तो याद ही होगा। जिसमें एक इंसानी बच्चा भेडिय़ों के बीच जंगल में पलता है। ऐसी ही कई घटनाएं दुनियाभर में हो चुकी हैं। बचपन से ही जंगल में रहने की वजह से इनकी आदतें जानवरों की तरह ही हो गई।कोई लंबी छलांग लगाना सीख गया तो किसी के दांत बहुत तेज हो गये। चार पैरों पर चलने वाले इन इंसानो की एक ऐसी घटना भारत में भी दो बहनों में देखने को मिली, जो भेडिय़ों के साथ रहती थी।
1920 में पश्चिम बंगाल के मिदिनापुर में 2 बहनों को भेड़िए की मांद से मुक्त कराया गया था। न जाने महज 8 साल की कमला और 18 माह की अमला कैसे भेडिय़ों के झुंड़ में पहुंच गई थी।
इन दोनों की देखभाल भेड़िए ही करते थे। वैसे तो ये दोनों बहने नहीं थी लेकिन रहती साथ ही थीं। दोनों भेडिय़ों जैसी ही हरकते करती थीं। हथेलियों व घुटनों के बल से ही चलना, कच्चा मांस खाना, रात में ज्यादा देखना।
जंगल से मुक्त कराने के बाद दोनों बिच्चियों को अनाथाश्रम में रखा गया था। आश्रम में जब उन्हें पहली बार देंखा तो उन्हें भूत समझ बैठे। उन्हें इंसानी व्यवहार करना सिखाने का प्रयास किया गया। उनपर कपड़ा डालने पर वे उसे फाड़ डालती थी। कच्चा मांस ही खाना पसंद करती थी और रात में अपने भेडिय़ों की आवाज ही निकाला करती।
दोनो बहनों को इंसान बनाने के कई प्रयास किए गए। लेकिन सितम्बर 1921 में दोनों बीमार हो गई। छोटी लड़की अमला गुर्दे के संक्रमण के कारण काल का ग्रास बन गई, इसका असर कमला पर पडा और वह लंबे समय तक अमला के शोक में डूब गई।
अनाथालय में 5 साल बिताने के बाद कमला में परिवर्तन दिखाई दिया, वह लोगों को पहचानने लगी। अब वह केवल थाली में खाना खाती थी और साफ शब्द बोल लेती थी। लेकिन कमला में न्यूरो डेवलेपमेंन्टल विकार आ गया था। जिसकी वजह से 1929 उसकी भी मृत्यु हो गयी।
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