कुपोषण जैसे कलंक को मिटाने के लिए मप्र सरकार कितनी गंभीर है, इसकी बानगी आईएएस सर्विस मीट में दिए मुख्यमंत्री के बयान से होती है। मुख्यमंत्री ने कहा ‘आज कल कुपोषण को लेकर काफी चर्चा होती है, हमारे पास मशीन नहीं है कि एक सेकंड में इसे खत्म कर दें।’ पिछले 13 सालों में कुपोषण से निपटने के लिए सरकार का बजट तो छह गुना बढ़ गया, लेकिन कुपोषण का कलंक जहां की तहां है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार 6 साल से कम उम्र के बच्चों की बुनियादी व्यवस्था ही नहीं कर पाई। प्रदेश में 42.8 प्रतिशत यानी लगभग 45 लाख बच्चे कम वजन के हैं। 42 प्रतिशत यानी 44 लाख बच्चों की उंचाई कम है। 70 लाख बच्चे खून की कमी के शिकार हैं। वहीं 11 हजार बसाहट केंद्रों में आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है और 35 लाख बच्चों का वजन ही नहीं हो रहा है।
छह साल में एक उद्देश्य भी पूरा नहीं
2010 में कुपोषण मिटाने के लिए अटल बाल आरोग्य मिशन शुरू किया गया था, लेकिन इसका एक भी उद्देश्य भी पूरा नहीं हुआ।
ये थे मिशन के उद्देश्य :
1. कुपोषण से होने वाली मौत को नकारेंगे नहीं
हश्र : आज भी सरकार कुपोषण से होने वाली मौत को नकारती है।
2. अलग-अलग विभाग मिलकर काम करेंगे।
हश्र : विभागों को इसके लिए कोई सिस्टम ही नहीं मिला।
3. समुदाय आधारित प्रबंधन करेंगे।
हश्र : कोई फ्रेमवर्क ही नहीं बन पाया।
4. स्थानीय भोजन को प्राथमिकता देंगे।
हश्र : आज भी ठेकेदारी व्यवस्था से टेक होम फूड सप्लाई हो रहा है।
5.स्व सहायता समूहों को सपोर्ट करेंगे।
हश्र : समूह आर्थिक संकट में हैं। कई बार उन्हें पैसा नहीं मिल पाता।