हाल ही में उन्होंने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में इस बात का खुलासा किया था। उन्होंने बताया कि निर्भया की हालत देख वे अंदर से दहल गए थे। जिदंगी में पहले कभी ऐसा केस नहीं देखा था।डॉ. कंडवाल बताते हैं कि मेरे सामने 21 साल की एक युवती थी। उसके शरीर के फटे कपड़े हटाए, अंदर की जांच की तो दिल मानों थम सा गया। ऐसा केस मैंने अपनी जिदंगी में पहले कभी नहीं देखा। मन में सवाल बार-बार उठ रहा था कि कोई इतना क्रूर कैसे हो सकता है?
मैंने खून रोकने के लिए प्रारंभिक सर्जरी शुरू की। खून नहीं रुक रहा था। क्योंकि रॉड से किए गए जख्म इतने गहरे थे कि उसे बड़ी सर्जरी की जरूरत थी। आंत भी गहरी कटी हुई थी। मुझे नहीं पता था कि ये युवती कौन है। इतने में पुलिस और मीडिया के कई वाहन भी अस्पताल पहुंचने लगे।
उपचार के लिए विशेषज्ञ डाक्टरों का एक पैनल बनाया गया। इसमें मैं भी था। बाद में हालत बिगड़ने पर उसे हायर सेंटर रेफर किया गया, जहां से एयर एम्बुलेंस के जरिए सिंगापुर भी भेजा गया। लेकिन तमाम कोशिश के बावजूद निर्भया को बचाया नहीं जा सका।
एक साल सफदरजंग के बाद डा. कंडवाल मेदांता अस्पताल चले गए। अब पिछले दो वर्षों से डा. कंडवाल दून अस्पताल में कार्यरत हैं।
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