प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अप्रैल 2017 में एक बहुत बड़ा निर्णय लिया. सरकार ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों सहित सभी वीवीआईपी के वाहनों पर बत्तियों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी. लालबत्ती की संस्कृति या कल्चर, जो की VIP कल्चर का जीता जागता समारक था, को इस फैसले ने हमेशा के लिया समाप्त कर दिया.
इस फैसले के कुछ घंटों के बाद नरेंद्र मोदी ने कहा था कि देश का हर भारतीय एक वीआईपी है और बत्ती की संस्कृति काफी पहले ही खत्म हो जानी चाहिए थी. प्रधानमंत्री मोदी ने ट्विटर पर अपने एक प्रशंसक के ट्वीट का जवाब देते हुए भी लिखा था ‘ऐसे प्रतीक नए भारत की भावना से कटे हुए हैं’. एक अन्य ट्वीट के जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘यह काफी पहले खत्म हो जाना चाहिए था. खुशी है कि आज एक ठोस शुरुआत हुई है’ उन्होंने कहा, ‘हर भारतीय खास है, हर भारतीय वीआईपी है’.
पर क्या ये VIP कल्चर सचमुच समाप्त हो गया है? इस हकीकत को जानने के लिए हमने भारतीय रेल के पास एक RTI एप्लीकेशन फाइल किया. आरटीआई के जरिए पूछा कि की ”ट्रेन में कितने बर्थ का आवंटन VIP कोटे के अधीन प्रतिदिन किया जाता है?
आरटीआई के जरिए रेल मंत्रालय से पिछले दस साल का औसत भी पूछा गया. वहीं आटीआई में उस आदेश की कॉपी भी माँगी गई थी जिसके अधीन रेल मंत्रालय द्वारा यह VIP कोटा दिया जाता है.
आरटीआई के जवाब में कहा गया की इतने लंबे समय का आंकड़ा देना मंत्रालय के लिए संभव नहीं है. मंत्रालय ने बताया कि 2016-2017 वित्त वर्ष में प्रतिदिन औसतन 73,014 बर्थ को यानी की कुल रिज़र्व सीटों को 5.15 % को VIP कोटे के अधीन रखा गया. इसमें से प्रतिदिन औसतन 27,105 यात्रियों को कोटा दिया गया.

साथ ही वीआईपी यात्रियों के लिए 1.91% कोटे का इस्तेमाल किया गया. वहीं बाकी की सीट आम यात्री को दी गई.
खासबात है कि सराकरी जानकारी के मुताबिक यह है तो VIP कोटा लेकिन रेल मंत्रालय की सरकारी शब्दावली में इसे इमरजेंसी कोटा की संज्ञा दी गई है.

वहीं आरटीआई के जरिए आदेश की कॉपी की मांग के जवाब में रेल मंत्रालय ने 09.02.2011 के एक कमर्शियल सर्कुलर नंबर 10 की कॉपी दी है जिसमें रेल मंत्रालय को यह कोटा उपलब्ध कराने के लिए कहा गया.
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