
सन फ्रांसिस्को। जल्दी ही आतंकवादियों के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल बेहद कठिन होने जा रहा है। वेब दुनिया की बड़ी कंपनियां अपनी साइटों से आतंकी सामग्री को हटाने के लिए चुपचाप ऑटोमैशन का इस्तेमाल शुरू कर चुकी हैं। यह प्रयास सफल होने पर मुफ्त संदेश और अपनी प्रचार सामग्री समर्थकों तक पहुंचाने में बाधा पैदा हो जाएगी।
सरकारों ने सोशल मीडिया कंपनियों पर बनाया दबाव
सीरिया से बेल्जियम तक आतंकी हमलों की बाढ़ आने के बाद दुनिया भर की सरकारों की तरफ से इंटरनेट कंपनियों पर दबाव था। इसे देखते हुए इंटरनेट कंपनियों ने अपनी साइटों से हिंसात्मक दुष्प्रचार को हटाने में गहरी रुचि लेने लगी। सूत्रों ने बताया कि यूट्यूब और फेसबुक उन साइटों में शामिल हैं जिन्होंने इस्लामिक स्टेट वीडियो को रोकने या उन्हें तेजी से खत्म करने का सिस्टम तैनात किया है।
मूल रूप से कापीराइट-संरक्षित विषयों की पहचान करने और उसे वीडियो साइट से हटाने के लिए तकनीक का विकास किया गया था। यह तकनीक “हैश” को देखने के लिए है। हैश एक प्रकार का यूनिक डिजीटल फिंगरप्रिंट है जिसे इंटरनेट कंपनियां अपने आप ही विशेष वीडियो को असाइन करती हैं।
यह तकनीक मैच करने वाली फिंगरप्रिंट सामग्री को तेजी से हटाने का रास्ता साफ कर देता है। ऐसा सिस्टम अस्वीकार की गई सामग्री को दोबारा पोस्ट किए जाने के प्रयास को पकड़ लेगा, लेकिन जिस वीडियो को पहले नहीं देखा गया उसे अपने आप ब्लॉक नहीं कर सकेगा।
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