सरकार के भरोसे नहीं गांव वाले, नक्सलियों से लड़ने के लिए खुद बनायी 'ये रणनीति'
सरकार के भरोसे नहीं गांव वाले, नक्सलियों से लड़ने के लिए खुद बनायी 'ये रणनीति'

सरकार के भरोसे नहीं गांव वाले, नक्सलियों से लड़ने के लिए खुद बनायी ‘ये रणनीति’

जगदलपुर। ओडिशा से सटे ग्राम पंचायत सौतनार के आश्रित गांव नामा के टंगिया दलम ने नक्सलियों से लोहा लेने का मन बना लिया है। मुखिया सामनाथ की नृशंस हत्या के बाद दलम के सदस्य नक्सलियों को सबक सिखाने की ठान चुके हैं।  ये लोग रात में टंगिया थामे गांव की पहरेदारी कर रहे हैं। बीते 4 नवंबर को मुखिया की पहली बरसी पर इन्होंने संकल्प लिया- ‘जान दे देंगे पर नक्सलियों को गांव में घुसने नहीं देंगे।’ इसका असर यह हुआ है कि आसपास के गांव के युवा भी नक्सलियों से टकराने की मन बनाने लगे हैं।सरकार के भरोसे नहीं गांव वाले, नक्सलियों से लड़ने के लिए खुद बनायी 'ये रणनीति'

क्या है टंगिया

अब आप सोच रहे होंगे कि टंगिया क्या होता है। दरअसल टंगिया एक तरह की धारदार कुल्हाड़ी होती है, जिसे आदिवासी पेड़ आदि काटने के लिए इस्तेमाल करते हैं। सुकमा जिले के तोंगपाल थाने से 40 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत सौतनार व कुमाकोलेंग आबाद हैं। किसी समय यहां नक्सलियों के कटेकल्याण एरिया कमेटी की हुकूमत चलती थी।

ग्रामीणों को हर घर से सालाना चंदा नकदी या अनाज के रूप में देना पड़ता था। 2015 में नक्सलियों ने गांव का स्कूल ढहा दिया। सड़क बनने से पहले ही उसका काम रोक दिया। इससे आक्रोशित ग्रामीणों की नक्सलियों को चंदा देना बंद कर दिया। बौखलाए नक्सली कुमाकोलेंग पहुंचे और तीन दर्जन परिवारों की लाठियों से जमकर पिटाई की थी। महिलाओं व बच्चों को भी नहीं बख्शा था।

इस तरह पड़ी टंगिया दलम की नींव

आए दिन नक्सलियों की प्रताड़ना से तंग आकर नामा व सौतनार के तीन मोहल्लों के युवकों ने जनवरी 2016 में टंगिया दलम का गठन किया। सामनाथ बघेल के नेतृत्व में युवकों की टोली रात में टंगिया लेकर गांव की चौकसी करने लगी। यह सिलसिला आज भी जारी है। वक्त के साथ ग्रामीणों के जेहन से नक्सली खौफ कम होता गया। यह बात नक्सलियों को नागवार गुजरी। 4 नवंबर 2016 को उन्होंने दलम का मनोबल तोड़ने के लिए घर में घुसकर सामनाथ की नृशंस हत्या कर दी थी।

नक्सलियों को उखाड़े फेंकने का संकल्प

दलम के वरिष्ठ सदस्य हिड़मा कश्यप ने बताया कि बीते 4 नवंबर को प्रथम पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देने सामनाथ के स्मारक पर सभी सदस्य जुटे। इस मौके पर नक्सलियों को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया गया। सदस्य सुकमन नाग, सामनाथ नाग ने बताया कि दल में कुल 50 सदस्य हैं। 25-25 सदस्य बारी-बारी से रात में गांव की पहरेदारी करते हैं। नक्सलियों को पैसा व अनाज देना बंद कर दिया है। सुखराम कश्यप, लच्छू बघेल, लाला कर्मा, गुड्डू कर्मा, आशाराम, नीला राम नाग, मानसाय कश्यप आदि ने बताया कि आसपास के गांव के युवा भी उनके नक्शे कदम पर चलने को तैयार हो रहे हैं।

खेती-किसानी करने वापस लौटे 50 परिवार

नक्सल फरमान के बाद 2016 में कुमाकोलेंग के करीब 50 परिवार गांव छोड़कर रिश्तेदारों के घर जाकर रह रहे थे। लेकिन आज सभी परिवार गांव लौट आए। सालभर से रुकी खेती कर रहे हैं। सुकमा से लौटीं रामबति पति ईश्वर ने बताया कि दादा लोग (नक्सलियों) की डर से गांव छोड़ा था। इस साल धान की फसल ली है। ईश्वर नेताम, गुणधर, नरेंद्र, हिम्मत सिंह, खेमचंद सभी ने इस साल फसल लगाई है। गांव के दर्जनभर नक्सल पीड़ित युवा पुलिस में हैं। सामनाथ की पत्नी को भी रसोइया की नौकरी मिली हुई है।

सलवा जुडूम से बिल्कुल अलग 

टंगिया दलम से पहले छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से लोहा लेने के लिए सलवा जुडूम बना था। यह सलवा जुडूम से बिल्कुल अलग है। सलवा जुडूम एक जन अभियान था, जबकि टंगिया दलम नक्सल प्रताड़ना से त्रस्त होने के बाद गठित युवाओं का दल है। इनसे अन्य गांव के युवा भी प्रेरित हो रहे हैं, जो आगे नक्सलियों के लिए बड़ी चुनौती बनेंगे। इन्हें किसी प्रकार की ट्रेनिंग नहीं दी गई है।

टंगिया, लाठी व तीर-कमान के दम पर अत्याधुनिक हथियारों से लैस नक्सलियों का सामना करने को तैयार हैं। दक्षिण बस्तर रेंज के डीआईजी सुंदरराज पी. का कहना है कि ग्रामीणों में सुरक्षा की भावना बढ़ी है। हम भी उनका हौसला हमेशा बढ़ाते रहते हैं। इसका प्रभाव भी दिखने लगा है।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com