गीता प्रेस द्वारा देवनागरी लिपि में छपी उर्दू गीता रमजान माह में हाथों-हाथ बिक गई। गीता प्रेस से लगभग दो हजार पुस्तकें प्रकाशित की गई थीं, जिनमें से मात्र 600 पुस्तकें ही गीताप्रेस में बची हुई हैं। जबकि, रमजान माह बीतने में अभी लगभग एक सप्ताह बाकी है।
गोरखपुर में गीता प्रेस के प्रचार विभाग से दो सौ पुस्तकें फुटकर व्यापारी ले गए। 295 पुस्तकें गीता प्रेस के रिटेल शॉप पर रखी गई थीं जिनमें से 200 पुस्तकें बिक गई हैं। गीता प्रेस कुल 15 भाषाओं में धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन करता है। उर्दू में प्रकाशन बीते मई के दूसरे सप्ताह में हुआ था। 12 मई से इसकी बिक्री शुरू हुई। गीता की लिपि देवनागरी है और शब्द उर्दू के हैं।
उर्दू में गीता का प्रकाशन पहली बार 2002 में हुआ था। लेकिन, उसकी लिपि उर्दू थी। उस समय उर्दू में गीता की कुल छह हजार प्रतियां प्रकाशित हुई थीं। इसके बाद 2010 में दो हजार व 2016 में दो हजार प्रतियां प्रकाशित की गईं। लेकिन, इस पुस्तक को वे ही पढ़ व समझ सकते थे जिन्हें उर्दू भाषा आती थी।
इस बार नगमा-ए-इलाही का प्रकाशन देवनागरी लिपि में उर्दू के शब्दों को पिरोकर किया गया है। इसे वे भी समझ सकते हैं जिन्हें उर्दू भाषा के शब्द का ज्ञान हो लेकिन वे उर्दू भाषा की लिपि नहीं जानते हैं। इस पुस्तक की चौड़ाई लगभग 5.5 इंच व लंबाई लगभग आठ इंच है। कीमत मात्र 20 रुपये है। इस पुस्तक में कुल 176 पेज हैं।
गीता प्रेस के उत्पाद प्रबंधक लालमणि तिवारी ने बताया कि गीता प्रेस की पुस्तकों की मांग सदैव रहती है। विशेष मांग पर फिर दूसरे संस्करण प्रकाशित करने पड़ते हैं। 2002 में उर्दू लिपि में गीता का प्रकाशन हुआ था। उसके बाद उस पुस्तक के दो और संस्करण निकल चुके हैं। यह पुस्तक रमजान के खास मौके पर प्रकाशित की गई। इसका लोगों ने जोरदार स्वागत किया है। कुल लगभग 600 पुस्तकें गीता प्रेस में बची हुई हैं। उम्मीद है कि एक सप्ताह के अंदर ये भी निकल जाएंगी।
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