- 10 साल बाद होने वाली है ये मीटिंग
- सभी मुख्यमंत्री लेंगे हिस्सा
- केंद्र-राज्य संबंध अजेंडा में
नई दिल्ली| प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शनिवार को सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ मीटिंग में केंद्र-राज्य के बीच संबंध कैसे हों, इस मुद्दे पर बड़ी बहस की शुरुआत कर सकते हैं। 16 जुलाई को होने वाली इस मीटिंग में लगभग सारे राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने आने की पुष्टि कर दी है। इस मीटिंग के लिए अजेंडा को पीएम मोदी खुद अपनी निगरानी में अंतिम रूप दे रहे हैं। सूत्रों के अनुसार चार घंटे से ऊपर चलने वाली इस मीटिंग में पीएम मोदी की इच्छा है कि लगभग 2 घंटे का फ्री सेशन हो जिसमें वह खुद या कोई सीएम अपनी ओर से कोई मुद्दा उठा सके।

10 साल बाद हो रही है इंटर स्टेट काउंसिल मीटिंग
इंटर-स्टेट काउंसिल की यह मीटिंग 10 साल बाद हो रही है। अंतिम बार यह मीटिंग यूपीए-1 के शासनकाल के दौरान 2006 में हुई थी। उसके बाद से अब तक इस काउंसिल की एक भी मीटिंग नहीं हुई है। इसका गठन केंद्र और राज्य के बीच बेहतर तालमेल बनाने के लिए वर्ष 1990 में किया गया था। पीएम मोदी ने सत्ता में आने के बाद इसे नए सिरे से जीवित करने की पहल की थी।
इस काउंसिल के चेयरपर्सन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं जबकि केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, मनोहर पर्रिकर, नितिन गडकरी, वेंकैया नायडू के अलावा सभी राज्यों के सीएम इसके सदस्य हैं। यह सभी सदस्य शनिवार की मीटिंग में मौजूद रहेंगे। इस मीटिंग से पहले इस काउंसिल के संयोजक के रूप में राजनाथ सिंह सभी राज्यों के साथ पिछले डेढ़ सालों के दौरान मीटिंग कर चुके हैं। सूत्रों के अनुसार मीटिंग का अजेंडा उन्हीं मीटिंग के आधार पर बनाया है।
अरविन्द केजरीवाल उठाएंगे दिल्ली का मुद्दा?
इस मीटिंग में सबसे अधिक उत्सुकता इस बात को लेकर रहेगी कि क्या दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल दिल्ली से जुड़ा मुद्दा उठाएंगे। दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच लगातार टकराव होता रहा है और इस मुद्दे पर केजरीवाल को नीतीश कुमार, ममता बनर्जी जैसे सीएम का खुला समर्थन मिलता रहा है। ऐसे में अगर केजरीवाल अपने राज्य से जुड़ा मुद्दा उठाते हैं तो दूसरे राज्यों के सीएम का रूख को देखना भी दिलचस्प होगा।
नजर रहेगी गैर कांग्रेसी, गैर बीजेपी राज्यों के रुख पर
इस मीटिंग के बदौलत मानसून सत्र से ठीक पहले पीएम नरेन्द्र मोदी बड़ा राजनीतिक संदेश देने की भी कोशिश में हैं। सरकार की मंशा है कि गैर कांग्रेसी, गैर बीजेपी सीएम को लूप में रखकर केंद्र की राजनीति हो और अहम बिल सहित दूसरे मुद्दे पर उनका समर्थन लिया जाए। इससे कांग्रेस को अलग-थलग करने की योजना है। इस मीटिंग में केंद्र सरकार की ओर से जीएसटी का मुद्दा भी उठाया जा सकता है जिसके अगले हफ्ते शुरू होने वाले संसद के मानसून सत्र में पास होने की संभावना है।
इसके अलावा पीएम मोदी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एमएम पंछी के नेतृत्व में बनी कमिटी की रिपोर्ट को भी सभी सीएम के सामने नये सिरे से विचार के लिए सामने रखेंगे। इस कमिटी को यूपीए-1 ने केंद्र और राज्य के बीच बेहतर संबंध के लिए नये सुझाव देने को कहा गया था। कमिटी ने अपनी रिपोर्ट 2008 में दे दी थी लेकिन यूपीए सरकार ने इसके बाद कोई मीटिंग ही नहीं बुलायी।
किन मसलों पर हो सकती है चर्चा
- राष्ट्रपति शासन लगाने के तरीके पर क्या विकल्प हो सकते हैं? क्या किसी राज्य के छोटे हिस्से में जरुरत पड़ने पर राष्ट्रपति शासन लगाकर केंद्र लॉ ऐंड ऑर्डर जैसे मुद्दे से निबटे। क्या ऐसी व्यवस्था बनायी जा सकती है?
- क्या दूसरे देश से कोई समझौता करने से पहले, जिससे तमाम राज्य प्रभावित हों उन से पूर्व सहमति या पूर्व जानकारी देना जरूरी हो और इसके लिए क्या सिस्टम बन सकता है?
- गवर्नर के रोल पर भी विस्तार से चर्चा होना अजेंडा में है। इसकी नियुक्ति से लेकर इनके कार्यकाल तक के बारे में सीएम से बात की जा सकती है ?
- चुनाव सुधार को लेकर भी केंद्र और राज्य के बीच सहमति बनाने की कोशिश हो सकती है।
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