मौजूदा वित्त वर्ष (2017-18) की पहली छमाही में देश के सरकारी बैंकों ने अपने एनपीए को मजबूत दिखाने के लिए कुल 55,356 करोड़ रुपये की कर्जमाफी का ऐलान किया है. सरकारी बैंकों द्वारा कॉरपोरेट सेक्टर को दी गई यह कर्जमाफी पिछले वित्त वर्ष 2016-17 की पहली छमाही के दौरान 35,985 करोड़ रुपये की कर्जमाफी का 54 फीसदी है.
बीते दस साल से लगातार सरकारी बैंक अपने एनपीए को सुधारने के लिए कर्जमाफी (लोन राइटऑफ) का ऐलान कर रहे हैं इसके बावजूद दस साल के दौरान लगातार बैंकों के एनपीए में इजाफा देखने को मिल रहा है. लिहाजा, सवाल बैंकों द्वारा किए जा रहे लोन राइटऑफ पर उठ रहा है.
सवाल 1 : क्या कॉरपोरेट कर्ज को माफ करने के इस तरीके से बैंकों का एनपीए खत्म होने की जगह लगातार बढ़ता जाएगा?
सवाल 2: क्या केन्द्रीय रिजर्व बैंक और केन्द्र सरकार को बैंकों की वित्तीय स्थिति को सुधारने का कोई और तरीका इजात करने की जरूरत है?
रिजर्व बैंक द्वारा सूचना के अधिकार के तहत एक अखबार को दी गई जानकारी के मुताबिक देश के सरकारी बैंकों ने अपने बहीखाते को मजबूत दिखाने के लिए एनपीए की समस्या से लड़ने के नाम पर बीते दस साल के दौरान कुल 3,60,912 करोड़ रुपये के कॉरपोरेट कर्ज को लोन राइटऑफ का सहारा लेते हुए खत्म करने का काम किया है.
आरबीआई द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक दस साल पहले वित्त वर्ष 2007-08 में सरकारी बैंकों ने एनपीए खत्म करने के लिए 8,09 करोड़ रुपये की कर्जमाफी की थी. इसके बाद साल दर साल इससे अधिक रकम की कर्जमाफी की गई है. वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान 11,185 करोड़ रुपये तो वित्त वर्ष 2010-11 में 17,794 करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया गया है.
कॉरपोरेट लोन की यह वार्षिक कर्जमाफी वित्त वर्ष 2012-13 में बढ़कर 27,231 करोड़ हो गया. वहीं 2014 में देश में नई सरकार बनने के बाद कॉरपोरेट कर्जमाफी की इस रकम में बड़ा इजाफा किया गया. वित्त वर्ष 2014-15 में जहां 49,018 करोड़ रुपये का कॉरपोरेट कर्ज माफ किया गया वहीं वर्ष 2015-16 में कुल 57,585 करोड़ रुपये के कॉरपोरेट कर्ज को बट्टा माफ (बैंकों की बैलेंस शीट से हटाया जाना).
वहीं बीते वर्ष 2016-17 में यह रिकॉर्ड स्तर 77,123 करोड़ रुपये की कर्जमाफी बन गई. वहीं मौजूदा वित्त वर्ष में फिलहाल यह रकम 55,356 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुका है.
क्या है लोन राइटऑफ?
बैंकों के एनपीए में कॉरपोरेट सेक्टर को दिया गया कर्ज रहता है. बैंक से लिए गए कर्ज पर जब कंपनियां ब्याज तक नहीं चुका पाती और बैंक का मूल धन डूबता दिखाई देने लगता है तो उक्त कर्ज को बैंक एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग असेट) करार देता है.
वहीं एनपीए की समस्या को निपटाने के लिए कर्ज लेने वाली कंपनी को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया में डाल दिया जाता है. बैंक के कर्ज से तैयार हुए कंपनी के असेट को आगे चलकर बैंक नीलाम करने की प्रक्रिया होती है.
लिहाजा, लोन राइटऑफ के जरिए सरकारी बैंक अपने बैलेंसशीट से उन कंपनियों के कर्ज को मिटा देते हैं जिससे उनका बहीखाता दुरुस्त हो जाए और नुकसान छिप जाए. लेकिन इससे बैंकों द्वारा अपने कर्ज की रिकवरी की प्रक्रिया पर कोई असर नहीं पड़ता. बहीखाता दुरुस्त होने के बाद कर्ज की रिकवरी से आने वाले पैसे को आगे चलकर बैंक की कमाई में जोड़ दिया जाता है. बहीखाता दुरुस्त करने से बैंकों को सबसे बड़ा फायदा नया कर्ज देने में होता है क्योंकि कोई भी बैंक रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित सीमा तक की कर्ज दे सकता है.
कॉरपोरेट कर्जमाफी पर क्या कहता है रिजर्व बैंक?
रिजर्व बैंक कह चुका है कि देश के सरकारी बैंक अपनी बैलेंसशीट को अच्छा दिखाने के लिए लगातार लोन राइटऑफ का सहारा लिया है. आरबीआई के मुताबिक लोन राइटऑफ का सहारा ऐसे वक्त में लिया जाता है जब बैंकों के बहीखाते में डूबा हुआ कर्ज बढ़ने लगता है और उसे नया कर्ज देने में खराब बैलेंसशीट के कारण दिक्कत होने लगती है.
क्यों नहीं खत्म लोन राइटऑफ से एनपीए?
वित्तीय जानकारों का मानना है कि यह एक आम धारणा है कि लोन राइटऑफ पारदर्शिता की कमी है और इसके जरिए सरकारी खजाने का दुरुपयोग किया जाता है. रिजर्व बैंक के एक पूर्व अधिकारी द्वारा दिए बयान के मुताबिक लोन राइटऑफ की प्रक्रिया को 5 से 10 साल में एक बार इस्तेमाल कर बैंकों को एनपीए खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए. लेकिन बीते दस साल के दौरान केन्द्र सरकार के फैसले से सरकारी बैंक प्रति वर्ष लोन राइटऑफ का इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं रिजर्व बैंक के मुताबिक लोन राइटऑफ कर्ज की छोटी रकम के लिए किया जाना चाहिए लेकिन बीते दस साल के जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक सरकारी बैंकों ने लगातर लोन राइटऑफ की रकम में बड़ा इजाफा किया है.