देश भर में तेजी खुल रहे निजी प्ले-स्कूलों की मनमानी की शिकायतों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण अयोग
(एनसीपीसीआर) ने एक विस्तृत दिशा निर्देश तैयार किए हैं जो इनके नियमन के लिए है। राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अपने यहां ये दिशा निर्देश लागू करते हैं तो कोई भी प्ले और प्री-स्कूल बिना मान्यता के नहीं चलाया जा सकेगा और वहां काम करने वाले सभी कर्मचारियों की पुलिस जांच और न्यूनतम योग्यता तय होगी। इसके साथ ही केंद्र सरकार आंगनबाड़ी केंद्रों को भी प्री-स्कूल के लिए तैयार कर रही है जिससे नौनिहालों को वहां पोषण के साथ-साथ मुफ्त शिक्षा मिल सकेगी। एनसीपीसीआर तीन से छह साल तक के बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए तैयार ‘रेगुलेटरी गाइडलाइन्स फॉर प्राइवेट प्ले स्कूल’ को केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भेजा जा चुका है। वहीं केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने बताया कि पहली बार आंगनबाड़ी केंद्रों को भी प्री-स्कूल शिक्षा के लिए तैयार किया जा रहा है और इसके लिए पहली बार मॉड्युल, पाठ्यपुस्तकें और अन्य जरूरी चीजें तैयार की जाएंगी। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि निजी प्री-स्कूल भी नियमित होने चाहिए, लेकिन यह सीधे केंद्र के अधीन नहीं है।
अगर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अपने यहां एनसीपीसीआर के दिशा-निर्देशों को लागू करते हैं तो निजी प्ले-स्कूलों की मनमानी पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकेगा। आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने कहा, ‘प्ले स्कूलों की मनमानी की बहुत शिकायतें आ रही थीं। देश में इन प्ले स्कूलों को लेकर कोई दिशा निर्देश नहीं है और ऐसे में इनकी जवाबदेही भी तय नहीं हो रही है। हमने ये दिशा-निर्देश तय किए ताकि इन प्ले स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लग सके।’ हालांकि, उन्होंने कहा कि शिक्षा काफी हद तक राज्य का मामला है, इसलिए इसमें राज्य सरकारों को ही पहल करनी होगी। फिलहाल किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में अपने यहां अलग-अलग नाम, प्ले-स्कूल, प्री-स्कूल, नर्सरी स्कूल, से चलने वाले संस्थानों को नियमित करने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है।
एनसीपीसीआर की ओर से तय दिशा-निर्देश प्ले-स्कूल की स्थापना से संचालन तक की शर्तें तय की गई हैं। प्रियंक कानूनगो ने कहा, ‘कोई भी प्ले-स्कूल बिना मान्यता के नहीं खोला जाएगा। मान्यता प्रदान करने के लिए जिला स्तर पर एक सक्षम अधिकारी होगा। कोई भी प्ले स्कूल तीन साल से कम के बच्चे को दाखिला नहीं दे सकेगा। स्कूल के जितने स्टाफ होंगे सभी की पुलिस जांच की जाएगी।’ दिशा निर्देश की अन्य शर्तों के अनुसार, ‘हर 20 बच्चों पर एक शिक्षक-शिक्षिका होंगे, हर 20 बच्चे पर देखभाल करने वाले एक सहायक-सहायिका होने चाहिए, इमारत में चाहरदीवारी होनी चाहिए और इसमें वेंटिलेशन, बच्चों के लिए आराम कक्ष, दिव्यांग बच्चों के अनुकूल शौचालय, बच्चों के नहाने के लिए साबुन व तौलिया, साफ पानी, सीसीटीवी कैमरे, अग्निशमन की व्यवस्था और समय-समय पर कीटनाशक का छिड़काव होना चाहिए।’ साथ ही इन प्ले-स्कूल में बच्चों के दाखिले के लिए माता-पिता का किसी तरह का साक्षात्कार नहीं होगा और दाखिले के एक महीने के भीतर पीटीएम का आयोजन करना होगा। बच्चों को किसी तरह का शारीरिक या मानसिक दंड देना अपराध माना जाएगा। कोई भी प्ले स्कूल संबंधित प्रशासन की ओर से तय सीमा के भीतर ही फीस लेगा। फीस मासिक या त्रैमासिक ही ली जाएगी।
आयोग ने यह भी कहा है कि एनसीसीई नीति 2013 के तहत हर प्ले स्कूल को तीन से चार घंटे तक खुले रहना जरूरी है तथा बच्चे की सेहत का खयाल रखने के लिए सभी बुनियादी चिकित्सीय प्रबंध होना चाहिए। उसने प्ले स्कूलों में आवेदन, पंजीकरण, हाजिरी, शुल्क से संबंधित शर्तें भी तय की हैं। एनसीपीसीआर ने कहा कि हर प्ले स्कूल को स्थापना के छह महीने के भीतर इन दिशा निर्देशों पर खरा उतरने का पूरा प्रबंध करना होगा। उसके मुताबिक प्ले स्कूल को यह हलफनामा देना होगा कि उससे जुड़ा कोई भी पदाधिकारी कभी पोस्को, किशोर न्याय कानून और बाल श्रम विरोधी कानून के तहत दोषी नहीं ठहराया गया है। आयोग ने ये दिशा-निर्देश शिक्षा के अधिकार कानून-2009 की भावना के अनुरूप और शिशुओं की देखभाल और शिक्षा से संबंधित राष्ट्रीय नीति (एनसीसीई)-2013 के आधार पर तैयार किया है।