जयपुर| नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत का कहना है कि तीन साल के अंदर भारत में नकदी मशीनें पूरी तरह अप्रासंगिक हो जाएंगी। उन्होंने यहां जयपुर साहित्य महोत्सव में यह बात कही, जहां दर्शकों ने उनका उत्साह और संशय के साथ स्वागत किया। कांत ने कहा, “हम एक बड़ी बाधा के बीच में है। इस समय करीब 85 फीसदी लेनदेन नकद होता है, जिससे काले धन को पनपने का मौका मिलता है। लेकिन हमने मोबाइल फोन में असाधारण वृद्धि दर देखी है। इसका मतलब यह है कि यहां कैशलेस अर्थव्यवस्था का बुनियादी ढांचा मौजूद है।”
वही, सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय की नवनियुक्त सचिव अरुणा सुंदराजन ने कहा, “एक बार जब चार बड़ी टेलीकॉम कंपनियां डिजिटल बैंकिंग शुरू कर देंगी, जोकि अगले साल होने जा रहा है, तो कैशलेस अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ेगी।”
बिजनेस स्टैडर्ड के ओपिनियन संपादक मिहिर शर्मा ने कहा, “यह सच है कि मोबाइल फोन का उपयोग तेजी से बढ़ा है, लेकिन इसका कारण यह है कि लैंडलाइन काम नहीं करते। सरकार ने इससे गलत सबक सीख लिया है। सरकार को लोगों को चुनने का अधिकार देना चाहिए। यह स्वाभाविक रूप से होगा न कि जोर-जबरदस्ती से।”
एंबिट होल्िंग्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अशोक बाधवा ने कैशलेस अर्थव्यवस्था के बारे में कहा, “उद्देश्य पर कोई सवाल नहीं है। लेकिन भारत में चीजें इतनी तेजी से नहीं बदलतीं। 90 के दशक में शेयर बाजार को खोलने में एक दशक लग गया, कैशलेश अर्थव्यवस्था में भी लंबा वक्त लगेगा।”
सम्मेलन के सभापति भारत पर लिखी कई किताबों के लेखक जॉन इलियॉट ने संदेह व्यक्त करते हुए कहा, “मुझे तो जयपुर शहर के बीच में भी इंटरनेट नहीं मिल रहा। तो तीन सालों में यह किस प्रकार संभव हो सकेगा।”
शर्मा ने इसके जबाव में कहा, “अगर इसका प्रयोग इतना ही आसान है तो सरकार ने क्यों 85 फीसदी नकदी वापस ले ली? क्या नोटबंदी का झटका देना सचमुच जरूरी था?”
कांत ने कहा, “इससे डिजिटल अर्थव्यवस्था की तरफ हम तेजी से बढ़ सकेंगे।”
वाधवा ने सहमति जताते हुए कहा, “विध्वंसकारी नीतियां हमेशा भारत में द्रुत बदलाव का वाहक रही हैं। लेकिन हमें पहले इंटरनेट अवसंरचना तैयार करना होगा और लोगों को खाते खोलने में बाधा बनी लालफीताशाही को हटाना होगा।”