दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के निर्देश के बाद पशुओं को पकड़ने के लिए निगम ने नए वाहन खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
राजधानी की सड़कों पर घूमते लावारिस पशुओं को हटाने की प्रक्रिया तेज होगी। निगम ने मवेशी पकड़ने वाले वाहनों की संख्या बढ़ाने का निर्णय लिया है। नए वाहनों को खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। लावारिस पशुओं से दिल्लीवासी परेशान हैं। साथ ही, ये समस्या नगर निगम के लिए भी सिरदर्द बनी हुई है।
निगम ने दो माह में करीब दो हजार से ज्यादा लावारिस पशुओं को सड़कों से पकड़कर उचित स्थान पर छोड़ा है, लेकिन इनकी संख्या कम होती नहीं दिख रही। लावारिस पशुओं के हमले से सड़क हादसे व यातायात प्रभावित हो रहा है। बुधवार को सीएम रेखा गुप्ता का काफिला जब हैदरपुर फ्लाईओवर से गुजर रहा था, तो अचानक लावारिस मवेशियों का झुंड सामने आ गया।
गनीमत रही कि सीएम के काफिले में शामिल वाहन हादसे से बच गए। इसके बाद सीएम गाड़ी से उतरीं और अधिकारियों को लावारिस पशुओं को सड़क पर आने से रोकने के लिए उपाय करने के निर्देश दिए। इस घटना के बाद निगम ने लावारिस पशुओं को पकड़ने वाले वाहनों की संख्या बढ़ाने का निर्णय लिया है।
ये इंतजाम अभी पर्याप्त नहीं
निगम के 12 जोनों में सड़कों से लावारिस पशुओं को हटाने के लिए 20 स्ट्रे एनिमल कैचर लगाए गए हैं, जिनके साथ 120 कर्मचारी इन पशुओं को पकड़कर उचित जगहों पर पहुंचाने का काम कर रहे हैं, लेकिन ये इंतजाम पर्याप्त नहीं हैं। निगम प्रशासन ने बताया कि पिछले साल 16251 लावारिस पशु सड़कों से पकड़े गए। इस साल फरवरी तक दो हजार से ज्यादा पशुओं को पकड़ा गया है।
यह है व्यवस्था
निगम का पशु चिकित्सा सेवा विभाग सड़कों से गाय, भैंस, बंदर और कुत्तों को पकड़ता है। गायों को केवला खानपुर में मानव गोशाला, डाबर हेड़ा में कृष्णा गोशाला, हरेवली में गोपाल गोसदन और सुल्तानपुर डबास में श्रीकृष्ण गौशाला में भेज दिया जाता है। चारों गोशालाओं में 19838 गायों को रखने की जगह है। इन गोशालाओं की देखरेख के लिए निगम को पैसे दिए जाते हैं। भैंसों को तिमारपुर में नीलामी के लिए भेजा जाता है। कुत्तों को टीका लगाने और बंध्याकरण करने के बाद वहीं छोड़ दिया जाता है, जहां से इन्हें पकड़ते हैं और बंदरों को असोला भाटी में छोड़ा जाता है।
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