नई दिल्ली: मौजूदा समय में पांचो राज्यों (यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर) में चल रहे विधानसभा चुनाव मोदी सरकार के लिए खासा मायने रखते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है। यूपी में भाजपा को हर हाल में जीत हांसिल करनी होगी नहीं तो आगामी जुलाई में दिल्ली की राह उसके लिए आसान नहीं होने वाली है।
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केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए यूपी विधानसभा चुनाव अन्य राज्यों से बेहद मायने रखता है क्योंकि आगामी राष्ट्रपति चुनाव में उसे अपने मनचाहे उम्मीदवार को विजयी बनवाने के लिए भी यूपी में कम से कम 150 सीटें जीतनी होंगी। तब जाकर वह अन्य दलों के सहयोग से अपने मनचाहे उम्मीदवार को राष्ट्रपति बनवा सकेगी। इसी साल जुलाई में देश के मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल समाप्त हो रहा है।
भाजपा के पास वर्तमान समय में राष्ट्रपति इलेक्टोरल कॉलेज में 3.80 लाख वोट हैं। वहीं अपने पसंदीदा कैंडीडेट को राष्ट्रपति बनवाने के लिए पार्टी को 5.49 लाख वोटों की जरूरत होगी। यदि केंद्र और राज्यों दोनों में भाजपा के सहयोगियों के वोट लगभग एक लाख हैं। ऐसे में बीजेपी को 70 हजार अतिरिक्त वोटों की जरूरत पड़ेगी। इस स्थिति में उत्तर प्रदेश चुनाव का परिणाम भाजपा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।
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बता दें कि राष्ट्रपति के चुनाव में लोक सभा, राज्य सभा और समस्त राज्यों के सभी सदनों (विधान सभा और विधान परिषद) के वोट शामिल होते हैं। जिनमें केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली और पुदुचेरी के वोट भी शामिल होते हैं।
वहीं अगर भाजपा के पास इन सब के बावजूद कुछ कमी रह जाएगी। तो ऐसे में पार्टी एआईएडीएमके जैसी पार्टियों से राष्ट्रपति चुनाव में सहयोग ले सकती है। क्योंकि एआईएडीएमके के पास कुल 50 सांसद हैं और तमिलनाडु विधानसभा में भी एआईएडीएमके के कुल 135 विधायक हैं। जिनकी राष्ट्रपति चुनाव में अहम भूमिका होगी।