लखनऊ: कानपुर के चिड़ियाघर में अभय नाम का बाघ अब बिल्कुल शांत रहने लगा है। कारण है आस-पास का माहौल। ये तो आपने सुना ही होगा कि बाघ की दहाड़ से पूरा जंगल कांप उठता है। ये जब सोते हैं, तो किसी की क्या मजाल कि नींद में खलल डाल सके। प्रकृति की गोद में रहने वाले ऐसे जंगल के राजा को एक तो कंकरीट के जंगल में लाकर बंद कर दिया गया है। ऊपर से अनुकूल माहौल देने के सारे जतन फेल हो गए। शोरशराबे और चकाचौंध करती रोशनी में उनकी रातों की नींद उड़ गई है। सारी रात जागने से चिड़चिड़े हो गए हैं। अपने बाड़े में सिर पटक देते हैं। इससे चेहरे पर गंभीर चोटें आ गई हैं।
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कानपुर प्राणि उद्यान के चिकित्सालय से सटी एक बहुमंजिला इमारत बन रही है। इससे काफी शोरगुल होता है। रात में तेज रोशनी चकाचौंध करती है। दिन-रात धूल उड़ती रहती है।
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चिकित्सालय परिसर में ही अभय का बाड़ा है। सुबह, दोपहर, रात निरंतर हो रहे निर्माण ने उसे मानसिक रूप से बीमार कर दिया है। वह न तो ढंग से खा पाता है और न ही सो पाता है।
इस शोरगुल से तंग आकर बाघ ने कई बार बाड़े में सिर पटक दिया। इससे उसे चोटें आई हैं। इलाज के लिए रोजाना दवा का छिड़काव किया जा रहा है। एंटीबायोटिक भी दी जा रही है।
दरअसल शेर, बाघ, तेंदुआ को एकांत और जंगल का माहौल पसंद है। रात में किसी तरह की आवाज और दूर-दूर तक रोशनी दिखने पर वह जगते रहते हैं। लगातार दस दिन तक न सोने से इनका बीमार होना स्वाभाविक है।
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