चिपको आंदोलन के आज 45 साल पूरे होने पर सर्च इंजन गूगल ने डूडल बनाकर याद किया है. इस आंदोलन की शुरुआत 1974 में पेड़ों की रक्षा के लिए उत्तराखंड में हुई थी. चिपको आंदोलन की एक मुख्य बात ये थी कि इसमें महिलाओं ने भारी संख्या में भाग लिया था. जैसा कि डूडल में दिखाया गया है कि कैसे महिलाएं पेड़ों के आस-पास उन्हें बचाने की कोशिश कर रही है जैसे आंदोलन के दौरान किया था. ये आंदोलन उत्तराखंड से शुरू होकर पूरे देश में फैल गया था.
बता दें, 1973 में गौरा देवी के नेतृत्व में पेड़ कटने से बचाने के लिए महिलाएं पेड़ों पर चिपक गईं थीं. इस आंदोलन के माध्यम से उन्होंने वनों पर अपना परंपरागत अधिकार जताया था. इस आंदोलन को व्यापक रूप पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा और चंडीप्रसाद भट्ट ने दिया था.
जानें आंदोलन की शुरूआत के बारे में…
26 मार्च, 1974 को पेड़ों की कटाई रोकने के लिए ‘चिपको आंदोलन’ शुरू हुआ था. उस साल जब उत्तराखंड के रैंणी गांव के जंगल के लगभग ढाई हजार पेड़ों को काटने की नीलामी हुई, तो गौरा देवी नाम की महिला ने अन्य महिलाओं के साथ पेड़ों की नीलामी का विरोध किया. इसके बावजूद सरकार और ठेकेदार के निर्णय में बदलाव नहीं आया. जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने पहुंचे, तो गौरा देवी और उनके 21 साथियों ने उन लोगों को समझाने की कोशिश की. जब उन्होंने पेड़ काटने की जिद्द की तो महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें ललकारा कि पहले हमें काटो फिर इन पेड़ों को भी काट लेना.
महिलाओं के विरोध के आगे ठेकेदार को झुकना पड़ा. बाद में स्थानीय वन विभाग के अधिकारियों के सामने इन महिलाओं ने अपनी बात रखी. जिसके बाद रैंणी गांव का जंगल नहीं काटा गया. इस प्रकार यहीं से ‘चिपको आंदोलन’ की शुरुआत हुई.
इनकी वजह से शुरू हुआ आंदोलन