प्लेटलेट्स या बिंबाणुओं को थ्रामबोसाइट्स या थक्का कोशिकाएं भी कहते हैं, क्योंकि वे ही रक्त का थक्का जमाती हैं। जब भी चोट लगने या घाव होने पर रक्त वाहिनियों से रक्तस्राव शुरू हो जाता है, तब प्लेटलेट्स ही वाहिनियों के खुले मुंह को बंद करती हैं।
वाहिनी कटने पर प्लेटलेट्स उसके मुंह पर एक के ऊपर एक इकट्ठी हो जाती हैं। रक्तवाहिनियों के कटे मुंह को बंद करने के लिए प्लेटलेट्स एक त्रिस्तरीय प्रक्रिया अपनाती हैं। चिपकना (अधेशन), चैतन्य होना (एक्टीवेशन) और चुनना (एग्रीगेशन)।
कटे मुंह पर प्लेटलेट्स चिपक जाती हैं, जिससे उनकी सतह खुरदरी और चिपचिपी हो जाती है, जिन पर और प्लेटलेट्स चिपकती हैं। इस तरह प्लेटलेट्स एक के ऊपर एक ईंट की तरह चुनती चली जाती हैं और खुले मुंह पर ढक्कन लग जाता है।
लाल रक्त कणों की उत्पत्ति लाल अस्थि मज्जा (रेड बोन मैरो) में होती है। लाल रक्त कणों के बनने की प्रक्रिया का नियंत्रण किडनी में होता है। किडनी खराब होने पर अल्परक्तता (एनीमिया रोग) इसी कारण होता है। ईंटें चुनने के बाद सीमेंट की परत भी प्लेटलेट्स लगाती हैं। प्लेटलेट्स एक रसायन छोड़ती हैं, जिससे रक्त में घुली फिब्रिनोजन प्रोटीन, रेशेरूपी फिब्रीन के जाल में परिवर्तित हो जाती है, जिनमें फंस कर लाल कण सीमेंट जैसी परत बना प्लेटलेट्स के ढक्कन को पुख्ता कर देते हैं।
शरीर में प्रतिदिन 10 अरब नई प्लेटलेट्स बनती हैं। रक्त में इनका जीवनकाल 7-10 दिन का होता है। सामान्यतया 1.5 से 4.5 लाख प्रति माइक्रो लीटर होती हैं। इनकी उत्पत्ति बोन मैरो में होती है, लेकिन इनका नियंत्रण थ्रोम्बोपोइटिन हार्मोन करता है, जो लिवर में बनता है।
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प्लेटलेट्स केवल स्तनधारी प्राणियों में ही होती हैं। मान्यता है कि स्तनधारियों में प्रसव के अंत में जब प्लेसेंटा गर्भाशय से अलग होता है, तब रक्तस्राव होता है। उसे रोकने के लिए प्रकृति से प्लेटलेट्स का प्रावधान विकसित हुआ है।