लखनऊ। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के क्षेत्र के लोकसभा उप चुनाव के परिणामों ने भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका दिया है। भाजपा को यह झटका काफी बड़ा माना जा रहा है। भाजपा को अब 2019 के लोकसभा से पहले यह बड़ी अलार्मिंग बेल बजी है।
भाजपा ने गोरखपुर व फूलपुर के उप चुनाव के साथ ही दोनों सीटों पर वोट भी गंवाए हैं। लोकसभा के आम चुनाव से गोरखपुर में भले ही पांच फीसद ही मत घटे हैं, लेकिन फूलपुर में तकरीबन 14 फीसद वोट कम हो गए हैं। लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा को गोरखपुर संसदीय सीट पर 51.80 फीसद वोट मिले थे। उपचुनाव में यह घटकर 46.53 फीसद ही रह गये हैं।
इस तरह से उपचुनाव में भाजपा को 5.27 फीसद मतों का नुकसान हुआ है। गोरखपुर में सपा के वोट 21.75 से बढ़कर 48.87 फीसद हो गए। गौर करने की बात यह है कि इस सीट पर लोकसभा चुनाव में बसपा को जहां 16.95 फीसद वोट मिले थे वहीं कांग्रेस 4.39 फीसद वोट पाई थी। नतीजे से साफ है कि अबकी 27.12 फीसद ज्यादा वोट पाने वाली समाजवादी पार्टी को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के तो वोट मिले ही, उसने भाजपा व कांग्रेस के वोट बैंक में भी सेंध लगाया है। इस बार कांग्रेस को सिर्फ 2.02 फीसद ही वोट मिले हैं।
इसी तरह फूलपुर सीट पर 2014 में भाजपा को 52.43 फीसद मत मिले थे जो कि उपचुनाव में 13.62 फीसद घटकर 38.81 फीसद ही रह गए हैं। कांग्रेस के वोट भी 6.05 से कम होकर 2.65 फीसद ही बचे। दूसरी तरफ सपा को पिछले चुनाव में मिले 20.33 फीसद मत में 26.62 फीसद इजाफा हुआ है। अबकी सपा को 46.95 फीसद वोट मिले हैं। चूंकि इस सीट पर पिछली बार बहुजन समाज पार्टी को 17.05 फीसद वोट मिले थे इसलिए नतीजे से साफ है कि उन वोटों का फायदा तो समाजवादी पार्टी को मिला ही है, कांग्रेस व भाजपा का वोट झटकने में भी कामयाब रही है। हालांकि, माना जा रहा है कि निर्दलीय अतीक अहमद चुनाव मैदान में न होते तो उसे मिले 6.58 फीसद वोट का फायदा भी सपा को ही होता।
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की मुख्य चिंता सिर्फ उनकी विरोधी पार्टी मायावती की बहुजन समाज पार्टी और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी सपा की एकजुटता ही नहीं है, बल्कि उत्तर प्रदेश में उनके मतदाताओं का भी कट जाना है। भारतीय जनता पार्टी को अब इस बात पर मंथन करना है कि उनका मतदाता क्यों वोट डालने नहीं गया। भाजपा के लिए यह काफी बड़ा झटका है। विपक्षी पार्टियों के पक्ष में उनका मतदाता हर बूथ पर वोट डालने पहुंचा और इसके कारण ही भाजपा के भी काफी वोट छिटक गए। उत्तर प्रदेश में अच्छे माहौल में भी सत्ता पर काबिज भाजपा की करारी से साबित हो गया कि उसके वोटर बिखर गए। उनका झुकाव सपा-बसपा की ओर हो गया है। त्रिपुरा के साथ ही देश के पूर्वोत्तर राज्यों तथा कर्नाटक की ओर रुख कर रही भाजपा की लोकप्रियता अपने ही प्रदेश यानी उत्तर प्रदेश में घट रही है।
उत्तर प्रदेश में इस बार परोक्ष रुप से बसपा समर्थित समाजवादी पार्टी के वोट प्रतिशत में 2014 लोकसभा चुनाव की तुलना में काफी इजाफा हुआ है। 2014 में मिले वोट की तुलना में इस बार बसपा समर्थित सपा के वोट शेयर में करीब नौ से दस फीसदी शेयर बढ़ा है। अब भाजपा के खिलाफ यह वोट स्विंग काफी अहम है। भाजपा का वोट उसके अभेद किला माने जाने वाले गोरखपुर में भी खिसक गया। जहां भाजपा करीब 30 वर्ष से सत्ता में थी।
भाजपा की इलाहाबाद के फूलपुर तथा गोरखपुर में हार में विपक्ष की एकता भी काफी अहम है। 2014 के लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार फूलपुर में करीब 13.6 फीसदी वोटों का नुकसान हुआ है, वहीं गोरखपुर में करीब पांच फीसदी वोटर्स छिटके हैं। भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण 66 फीसदी वोट यूनाइटेड विपक्ष को जाना है, जिसमें 33 फीसदी भाजपा के मतदाता विपक्ष के खाते में गए हैं।
भाजपा की सिर्फ इसके कारण हीं नहीं बल्कि विपक्ष की विशाल एकजुटता की वजह से भी हार हुई है। प्रदेश में अब विपक्ष की एकता के साथ-साथ भाजपा की गिरती लोकप्रियता ने भी गोरखपुर तथा फूलपुर में विपक्ष की जीत में बड़ी भूमिका निभाई है। विपक्ष को दोनों की जरूरत थी, एक भाजपा के वोट में सेंध लगाना और दूसरी एकजुटता की, जिसकी वजह से यह संभव हो पाया है।