उत्तराखंड : तीसरे सबसे सख्त ‘दंगा रोधी’ कानून में न अपील न सुनवाई

दंगाइयों और उपद्रवियों को सबक सिखाने के लिए उत्तर प्रदेश और हरियाणा राज्य में यह कानून लागू है। लेकिन उत्तराखंड सरकार का कानून इन दोनों राज्यों से सख्त बताया जा रहा है।

देवभूमि में दंगे, फसाद या अशांति फैलाने वाले पर नकेल कसने के लिए धामी सरकार दंगारोधी कानून के तहत सरकारी और निजी चल या अचल संपत्ति के नुकसान की ही भरपाई नहीं करेगी, बल्कि दंगा-फसाद पर काबू पाने के लिए सरकारी मशीनरी का जो खर्च होगा, वह भी दंगाइयों से वसूला जाएगा। कानून के तहत गठित होने वाले दावा अधिकरण (ट्रिब्यूनल) ने एक बार फैसला सुना दिया तो उसके खिलाफ न कोई अपील हो सकेगी न सुनवाई। अधिकरण का फैसला अंतिम होगा। उसके आदेश के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं हो सकेगी। जहां दावा अधिकरण गठित हो जाएगा, वहां किसी सिविल न्यायालय को प्रतिकर के किसी दावे से संबंधित किसी प्रश्न को अंगीकृत नहीं कर सकेगा।

उत्तर प्रदेश से सख्त कानून

दंगाइयों और उपद्रवियों को सबक सिखाने के लिए उत्तर प्रदेश और हरियाणा राज्य में यह कानून लागू है। लेकिन उत्तराखंड सरकार का कानून इन दोनों राज्यों से सख्त बताया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में दंगा-फसाद या विरोध प्रदर्शन के दौरान मृत्यु पर प्रतिवादी से पांच लाख रुपये और घायल होने पर एक लाख रुपये के जुर्माना वसूलने का प्रावधान है। लेकिन उत्तराखंड सरकार ने मृत्यु पर आठ लाख और घायल पर दो लाख का जुर्माना वसूलने का कानून बनाया है।

धामी सरकार का तीसरा सबसे सख्त कानून

धामी सरकार में यह तीसरा सबसे सख्त कानून बनाए जाने का दावा किया जा रहा है। इससे पहले प्रदेश में नकलरोधी कानून लागू किया गया। कानून में आजीवन कारावास और 10 करोड़ रुपये तक जुर्माने का प्रावधान किया गया। जानकारों के मुताबिक, नकल रोकने के लिए देश में इससे सख्त कानून नहीं है। धामी सरकार ने दूसरा सबसे बड़ा फैसला समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक को मंजूरी देने का है। उत्तराखंड देश का पहला राज्य है, जिसकी विधानसभा ने यूसीसी विधेयक को मंजूरी दी।

दावा अधिकरण को कार्रवाई के अधिकार

सरकार ने दंगाइयों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने पर उत्तराखंड लोक तथा निजी संपत्ति क्षति वसूली अध्यादेश 2024 के तहत कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए एक से अधिक दावा अधिकरण (क्लेम ट्रिब्यूनल) बनेंगे। इसी ट्रिब्यूनल के तहत दंगाइयों और उनके परिजनों, संपत्ति आदि से नुकसान की भरपाई होगी। इसके लिए एडीएम श्रेणी के अधिकारी को दावा आयुक्त को जिम्मेदारी दी जाएगी। दावा अधिकरण में रिटायर्ड जज के अलावा अन्य सदस्य होंगे।

ऐसे करेंगे दावा याचिकाः

निजी संपत्तिः निजी संपति के स्वामी संबंधित थानाध्यक्ष या थाना प्रभारी से ऐसी रिपोर्ट की प्रति प्राप्त करने के बाद नुकसान की भरपाई के लिए याचिका दाखिल करेंगे।
लोक संपत्तिः कार्यालयाध्यक्ष संबंधित पुलिस क्षेत्राधिकारी की रिपोर्ट, जो घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट पर आधार पर याचिका दाखिल करने के लिए कदम उठाएगा।

संपत्ति क्या है?

निजी संपत्तिः किसी व्यक्ति या धार्मिक निकाय, सोसाइटी, न्यास या वक्फ के स्वामित्वधीन या नियंत्रणाधीन कोई चल या अचल संपत्ति
लोक संपत्तिः केंद्र सरकार, राज्य सरकार, कोई स्थानीय प्राधिकरण, कोई निगम, सरकारी संस्था, उपक्रम
ट्रिब्यूनल का गठनः सरकार एक या उससे अधिक संपत्ति के नुकसान के दावों के लिए अधिकरणों (ट्रिब्यूनल) का गठन करेगी। इसे दावा अधिकरण कहा जाएगा। अधिकरण में अध्यक्ष रूप में सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश स्तर का हो। साथ ही अपर आयुक्त की श्रेणी के अधिकारी स्तर के सदस्य हों।
ट्रिब्यूनल की शक्तियांः दंगा, फसाद, अशांति आदि की घटनाओं में किसी लोक या निजी संपत्ति के नुकसान का समुचित प्रतिकर का निर्णय करेगा। उचित समझेगा तो जांच भी करा सकेगा। नुकसान का आकलन कराने या अनुसंधान के लिए एक दावा आयुक्त नियुक्त कर सकेगा। प्रत्येक जिले में नियुक्त पैनल से दावा आयुक्त की सहायता करने के लिए एक आकलनकर्ता भी रख सकेगा। दावा आयुक्त तीन माह में अपनी रिपोर्ट दावा अधिकरण को देगा। दावा अधिकरण पक्षकारों की सुनवाई करेगा। अधिकरण को सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां होंगी। उसे सिविल न्यायालय के रूप में समझा जाएगा।
विरोध प्रदर्शन का आह्वान करने वाला भी प्रतिवादीः जिस विरोध प्रदर्शन या घटना के कारण निजी या लोक संपत्ति को क्षति पहुंची है, उस घटना का आह्वान करने वाला भी प्रतिवादी माना जाएगा। कानून के तहत नुकसान की भरपाई ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों से भी की जा सकेगी जिसने या जिन्होंने ऐसे कार्यों को करने का आह्वान किया या उसे प्रायोजित किया।

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