सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के आरोप में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ सीबीआइ जांच का आदेश देने के उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने त्रिवेंद्र सिंह रावत और उत्तराखंड राज्य की याचिका पर नोटिस भी जारी किया है। बता दें कि भ्रष्टाचार के मामले में केस दर्ज कर सीबीआइ को जांच का आदेश देने के उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। इसके अलावा उत्तराखंड सरकार ने भी विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
पत्रकार उमेश शर्मा की याचिका पर दर्ज हुआ था मामला
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने गत 27 अक्टूबर को पत्रकार उमेश शर्मा की याचिका पर फैसला सुनाते हुए मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वाले सोशल मीडिया पर डाले गए वीडियो के संबंध में दर्ज मामला रद कर दिया था। सोशल मीडिया पर डाले गए वीडियो के संबंध में सेवानिवृत प्रोफेसर हरेंद्र सिंह रावत ने उमेश शर्मा के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई थी। हाई कोर्ट ने आदेश में उक्त एफआइआर को रद करने के साथ ही सीबीआइ को पत्रकार की याचिका में लगाए गए आरोपों के आधार पर मामला दर्ज कर जांच करने का आदेश दिया था।
सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत बोले- आरोप फर्जी और आधारहीन
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। रावत ने हाई कोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए याचिका में कहा है कि वह प्रदेश के चुने हुए मुख्यमंत्री हैं और राजनीतिक लाभ लेने के लिए इस विवाद में बेवजह उनका नाम घसीटा गया है। कहा कि उमेश शर्मा की हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में उनके खिलाफ किसी भी तरह की जांच या सीबीआइ जांच की मांग नहीं की गई थी। याचिका में उमेश ने सिर्फ यह मांग की थी कि उसके खिलाफ देहरादून में दर्ज एफआइआर 0265- 2020 रद की जाए। हाई कोर्ट ने अप्रत्याशित ढंग से उस याचिका पर फैसला सुनाते हुए न सिर्फ उमेश के खिलाफ दर्ज एफआइआर रद की, बल्कि उनके (त्रिवेंद्र सिंह रावत) के खिलाफ सीबीआइ को भ्रष्टाचार के आरोपों में एफआइआर दर्ज कर जांच करने का भी आदेश दे दिया जो गलत और आधारहीन है। जो आरोप लगाये गए हैं वे पहली निगाह में फर्जी और आधारहीन हैं।
ये है पूरा मामला
दरअसल, सेवानिवृत प्रोफेसर हरेंद्र सिंह रावत ने देहरादून के राजपुर थाने में उमेश शर्मा के खिलाफ ब्लैकमेलिंग, दस्तावेजों की कूट रचना और गलत तरीके से बैंक खातों की जानकारी हासिल करने का आरोप लगाते हुए एफआइआर दर्ज कराई थी। आरोप लगाया था कि उमेश ने सोशल मीडिया पर वीडियो डाला था। इसमें प्रोफेसर रावत और उनकी पत्नी सविता रावत के खाते में नोटबंदी के दौरान झारखंड के अमृतेश चौहान द्वारा 25 लाख रुपये जमा करने की बात थी। साथ ही 25 लाख की यह रकम त्रिवेंद्र सिंह रावत को देने को कहा गया। वीडियो में सविता रावत को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की सगी बहन बताया गया था। प्रोफेसर रावत के अनुसार, तभी तथ्य झूठे हैं और उमेश ने फर्जीवाड़ा कर उनके बैंक के कागजात बनवाए। बैंक खाते की सूचना भी गैरकानूनी तरीके से प्राप्त की। उमेश शर्मा ने यह मुकदमा रद कराने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी जिस पर हाई कोर्ट ने फैसला दिया है। उसी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुख्यमंत्री और राज्य सरकार पहुंची है।
सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को अब सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई है। फिलहाल उनके खिलाफ हाईकोर्ट द्वारा जारी आदेश पर कार्रवाई नहीं की जाएगी। यकीनन सीएम रावत के खिलाफ यह राहत की खबर है।