नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक बड़ा फैसला देते हुए मुंबई की रेप पीड़िता को गर्भपात की अनुमति दे दी है। मुंबई की रेप पीड़ित महिला ने सुप्रीम कोर्ट में प्रेगनेंसी एक्ट 1971 को असंवैधानिक बताते हुए चुनौती दी थी। कोर्ट ने महिला की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड के गठन का आदेश दिया था। मेडिकल बोर्ड ने सोमवार को अदालत के सामने अपनी रिपोर्ट पेश की जिसके बाद अदालत ने यह फैसला सुनाया है। रिपोर्ट में कहा गया है महिला के गर्भ में बच्चे की हालत ठीक नहीं है। अपनी याचिका में दुष्कर्म पीड़िता ने कहा था कि उसके बच्चे के जन्म लेते ही मर जाने की आशंका है।
SC ने एक्ट 1971 को दिया क़ानूनी चुनौती
गौरतलब है कि भारतीय कानून के मेडिकल टेर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 के मुताबिक 20 हफ्ते से ज्यादा गर्भवती महिला का गर्भपात नहीं हो सकता। इस कानून को चुनौती देते हुए महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि वह बेहद ही गरीब परिवार से है।
पीड़िता का ये है तर्क
पीड़िता का तर्क था कि जब ये कानून बना था उस वक्त 20 हफ्ते की गर्भपात का नियम ठीक था, लेकिन अब वक्त बदल चुका है। ऐसे में अब 26 हफ्ते बाद भी गर्भपात हो सकता है।
गर्भ से जान को खतरा
दुष्कर्म पीड़िता का कहना था कि गर्भ के चलते उसकी जान को खतरा है। दुष्कर्म पीड़िता का कहना है कि उसके गर्भ में पल रहा भ्रूण सामान्य रूप से विकसित नहीं हो रहा है। उसके जन्म लेते ही मर जाने की आशंका है।
यह है मामला
दुष्कर्म पीड़िता के मुताबिक, 2 जून, 2016 को डॉक्टरों ने उसका गर्भपात करने से इनकार कर दिया। डॉक्टरों ने गर्भपात नहीं करने के पीछे कानून का हवाला दिया। साथ ही कहा कि वह चाहे तो भी गर्भपात नहीं करवा सकती।
मजबूरन करना पड़ा कोर्ट का रुख
दुष्कर्म पीड़िता का कहना है कि चारों ओर से निराशा मिलने के चलते उसे कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। पीड़िता का कहना है कि गर्भपात की इजाजत मिलने से उसे राहत मिलेगी।
Live Halchal Latest News, Updated News, Hindi News Portal
